दो आँसू
दो आँसू
नभ में काली बरखा बनके
झर झर बरसे हैं दो आंसू
कागज में लिखे भावों पर भी
क्यों बह आते हैं दो आंसू
नीरव मन की प्रत्याशा में
हर बार बहें हैं दो आंसू
दुख में सुख में बनके साथी
मेरे साथ चले हैं दो आंसू
मैं डूब भी जाऊं दरिया में
न डूबेंगे ये दो आँसू
जब जब होगी बाते तेरी
हर बार बहेंगे दो आँसू
सूने दिल की परिभाषा में
क्यों शामिल हैं ये दो आँसू
उम्मीदों के इन रेले में
क्यों गूथें हुए है दो आँसू
तेरे मेरे बही खाते में
कई बार बहे हैं दो आँसू
मेरी इस अंतिम यात्रा में
तेरे भी बहेंगे दो आंसू।
