दीपक
दीपक
मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ
तम तिमिर से ढके कमरे
का मैं ही तो दिनकर हूँ
मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ।
राग-द्वेष से भरे चित्त में
शान्ति कर पाता हूँ
मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ।
क्रोध की ज्वाला को
आग से ही बुझाता हूँ
मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ।
जब तुम मुझे जलाते हो
मैं सबको अपना सुन्दर नृत्य दिखाता हूँ,
कथक के चक्रदार में
अपने काले घुँघरू तोड़ लाता हूँ,
जो उड़ पवन में नभ का भी
शर्म से मुख काला करदें
मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ।
अपने जीवन की घड़ियों को
मैं छककर पीता हूँ,
एक एक क्षण को
मैं भरपूर जी लेता हूँ
रखो मुझे भगवान के घर में तो,
भक्ति में जीवन निकालते हूँ,
रखदो मुझे सैनिक के कफ़न पर
मैं एक रुद्र तान सुनाता हूँ,
यूँ देश प्रेम की ज्वाला भी
थरथर एक ध्वनि सुनाती है,
मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ।
मेरी मृत्यु जब निकट हुई
तब भी मैं उससे डरा नहीं,
तब मेरी ज्वाला ऊपर उठकर
कुछ ऐसा कर जाती है,
मानो वो उस चक्रदार में
मृत्यु को गले लगाती है
मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ।
