धरा तुं स्वाभिमान।
धरा तुं स्वाभिमान।
है धरा तू , स्वाभिमान तू ही
तू हिन्द की जननी है,
ये मुल्क तुझसे आबाद रहा
तू कण कण में चमकती है।
तेरी महिमा वीर हृदय में
जो महाराणा भी अड़ गये,
मस्तक कटा गोरा,बादल
फिर लाज धरा की बचा गये।
तूने उपजे जगवीर , रणवीर
तू विष पी, अमृत उगल गई,
इस धरती की खातिर तो
लक्ष्मीबाई भी शत्रुओं से भिड़ गयी।
तेरी खुशबू के दीवाने
हिन्द के रखवाले मचल गये,
शहादत दी भरे यौवन में
भगत सिंह भी फाँसी झूल गये।
बना आज भारत विश्व गुरु
इस महक से धरती खिल उठी,
इस माटी की खातिर तो
एक माँ की कोख सुनी पड़ी।
फिर चले वतन के मतवाले
धरती की आन बान रखे,
ये तेरा यश का आफताब
सदा ही उदीयमान रहे
सदा ही उदीयमान रहे।