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Divisha Murkute

Abstract

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Divisha Murkute

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दहेज एक अभिशाप

दहेज एक अभिशाप

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दहेज प्रथा को जड़ से मिटाना हैं।

अब एक कदम भी पीछे नहीं हटाना हैं।


अमीर हो, खुद कहते हो

फिर क्यों हमसे दहेज लेते हों?


कहने के लिए बस मैं बेटी हूँ।

पर असल में, मैं पैसों की पेटी हूँ।


तुम जैसों के कारण ही बेटियाँ हैं बोझ

पर असल में, वोही प्यार का हैं बोध।


दहेज लेकर भी, लोग हमारी देह तक जला देते

भूला न देना वो सात फेरे, जो हमने अग्नि के समक्ष लिए।


विवाह संबंध दो आत्माओं का पवित्र गठ बंधन है

पर ना समझो के लिए, यह बस पैसों का प्रबंध हैं।


दहेज प्रथा को जड़ से मिटाना हैं।

अब एक कदम भी पीछे नहीं हटाना हैं।




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