चलो कुछ दिन दूर और सही
चलो कुछ दिन दूर और सही
चलो कुछ दिन दूर और सही,
भावुक होकर गलती करने का,
यह वक़्त नही।
इरादे और संयम ही है, अब हमारी पूंजी,
सुनसान है सड़के, लेकिन इक आस है,
जो हर तरफ है गूंजी।
कुछ सुहाने से लगते जरूर हैं, पुराने वो पल,
किंतु और सुनहरा होगा भविष्य,
यदि अब रहें हम अटल।
पुलिस और प्रशासन जरूर है कुछ सख्त,
लेकिन साथ मिलकर ही तो करना है हमें,
कोरोना को अशक्त।
वक़्त है यह, परिवार का साथ निभाने का,
स्वयं और सबको बीमारी से बचाने का।
कुछ नया सीखने का और कुछ सिखाने का,
सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाकर,
एक दूसरे के करीब आने का।
चलो कुछ दिन दूर और सही,
भावुक होकर गलती करने का,
यह वक़्त नही।
करना है बहुत कुछ,
लेकिन वक़्त नहीं मिलता यह कहते थे,
अब फुर्सत है, तो चलो बात ही कर लें,
उनसे जो कभी जीवन का मुख्य हिस्सा रहते थे।
अब फुर्सत है तो चलो,
कुछ नया सा ही कर लेते हैं
कोई चित्र, कोई कविता, या
थोडा सा व्यायाम ही कर लेते हैं।
यह मौका है,
पुरानी आदतें चलो सुधारते हैं,
थोड़ा खुद पर और थोड़ा
परिवार पर ध्यान देते हैं।
जान है तो जहान है,
सही ही कहा है किसीने,
आज मालूम हो रहा,
जब दिन भी लग रहे महीने।
चलो कुछ दिन दूर और सही,
भावुक होकर गलती करने का,
यह वक़्त नही।
