चलाते हैं
चलाते हैं
हम जब भी कागज़ पर कलम चलाते हैं
गोया यूँ होता है की बैठे कदम चलाते हैं।
सबने हाथों में महँगी घड़ियाँ पहन रखी थी
जिनके बोल थे की वक्त को हम चलाते हैं।
आपने जो बोला कभी करके दिखाया नहीं
ज़हीन लोग काम करते हैं ज़ुबाँ कम चलाते हैं।
न कोई जब्र न ही बंदिश कभी रखी तुम पर
दोस्त हम नहीं जो औरों पर हुकूम चलाते हैं।
अहद-ए-इश्क़ भी बच्चों की तरह ज़िदी हैं
कोई बात नहीं मानी जाती तो कसम चलाते हैं।