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shubham dwivedi

Abstract

4.7  

shubham dwivedi

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चिट्ठियां

चिट्ठियां

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आज़ भी पढ़ी जाती हैं चिट्ठियाँ 

उनमें लिखी जाती हैं प्रस्तावित छुट्टियाँ

मिलने को अपनों से भेजते हैं पत्र

मगर बिरले ही होते हैं ऐसे भद्र।


आज़ भी नम होती हैं आँखें

किसी के लिखे पत्र को पढ़कर

आज़ भी बिछौना भींगता है

कागज़ पर लिखे काले अक्षरों को पढ़कर।


मोबाइल के इस दौर में भावनाओं का तोडना

चिट्ठियाँ बखूबी जानती हैं दिलों का जोड़ना

ईमेल और व्हाट्सप्प के इस रंगीन दौर में

कई चिट्ठियाँ मिल जाती हैं कूड़े के ढेर में।


वो चिट्ठियाँ होती हैं झुग्गियों की कचरे के ढेर में

अट्टालों के पत्र सहेजकर रखे हैं लाज़िमी दस्तावेज के रूप में,

इन्ही अट्टालों की चिट्ठियाँ पढ़कर भी नम हो जाती हैं आँखें

सोचो झुग्गियों की चिट्ठियाँ पढ़कर कैसे बिछौना भिंगोयेंगी आखें।


हम अपनी पीढ़ी में लिखेंगे अब बहुत सारी चिट्ठियाँ

आंगन में अपने रखेंगे अंगीठियाँ

हमें अच्छा लगता है लिखना और बांचना

बांचते हुए लिखने वाले के प्रेम का महसूस करना।


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