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Varsha Agarwal

Abstract

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Varsha Agarwal

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चिंतन

चिंतन

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देवालय ,गलियों के

बन गए हैं आश्रय स्थल 

श्वानों के

धिक् ! हे मानव

तेरी नवोन्मेषशालिनी


प्रखर मेधा को

निरर्थक हैं

सृजित गगनचुम्बित 

नूतन देवस्थान

चाहते हो धर्मपथ पर चलना


तो सहेजो

पुरातात्विक भग्नावशेषों को

अग्रसर हो

पुनर्निर्माण की ओर

पथवारी पूजन वाले देश में

देवस्थान की इतनी दुर्दशा ?


कुछ तो कहना चाहती है हमसे

समझना हमें है

कि हम कहाँ जा रहे हैं !


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