चेतक की शौर्य गाथा
चेतक की शौर्य गाथा
मैं बात कहूं क्या राणा की, चेतक की बात ही काफी है
राजपूत के वंशज की यह निशानी, पूरे इतिहास पर भारी है
जो बिना कोडे के चलता सर पट्, टापे उसकी करती टप टप,
बात हवा से होती थी, जब होता था रणक्षेत्र में,
राणा भी गर्व करे जिस पर, वह चेतक ही एक निशानी था
गजमुख लगाए वह अश्व, शत्रु के गजो पर भारी था,
शायद वह तो एकलिंग के, भोले का अवतारी था
शत्रु को धूल चटाने, जब वह रण में आ जाता था,
राणा की पुतली फिरते ही, चेतक भी मुड़ जाता था
चेतक के जज्बातों से, हाथी भी घबराता था,
जब टॉप रखे सिर पर तब, हाथी भी सहम जाता था
घाव लगा फिर भी वह, अपना कर्तव्य निभाता था
शत्रुओं के मध्य से, राणा को पार लगाता था
जख्मी चेतक दौड़ रहा था, आगे बरसाती नाला था,
पीछे अकबर की सेना थी तब चेतक ने उस पार निकाला था
शत्रु भी देख दंग थे पर चेतक ना घबराया था,
राणा की विवशता को तब, चेतक ही समझ पाया था
निर्भीकता से वह अपना, कौशल दिखलाया जाता था,
रणभूमि में सदा वह, विराट रूप में आता था
वह एक अकेला ही , सब मुगलों पर भारी था,
अकबर भी जिसका लोहा माने, वह वीर प्रतापी था
हल्दीघाटी के मैदान में, मेवाड़ का सिंह था वह,
राणा का सबसे प्रिय, चेतक ही वीर था वह
अंतिम छलांग के बाद ही उसने, अंतिम सांस भी ली थी,
अपने राणा के प्राण बचानेे, अपने प्राण भी दिए थे उसने
राणा की आंखों से आंसू, पहली बार ही तब निकले थे,
फिर चेतक के बिना ही राणा, अकेले रण में उतरे थे।