चौका-बर्तन
चौका-बर्तन
हड्डी कँपाती ठंड, और इस टपकते कोहरे के बीच,
खुले आसमान के नीचे बैठे, और हाफ स्वेटर पहनकर;
ठंडे पानी से बर्तन माँजती,
गाँव की ये औरतें;
बोलेगा फिर इन्हीं के घरों का कोई मर्द,
कि 'करती ही क्या हो चूल्हा-चौका और बर्तन के सिवा?'
