चाँद पे भी दाग होता है
चाँद पे भी दाग होता है
नाकामयाबी के अंधेरे में
तू क्यों हौसला खोता है
सारे जहां को रौशन करने वाले
चाँद पे भी तो दाग होता है।
ज़िद की ज्वाला बुझा कर
तू क्यों खुद राख होता है
दुनिया को ज़िंदा रखने वाले
सूरज में आग ही तो होता है।
सपने देखने की उम्मीद से
तू बेचैन हो के सोता है
हर काली रात के बाद
एक नया सवेरा होता है
एक छोटी दौड़ हार के
तू क्यों दिल ही रोता है
तुझे आसमानों में उड़ना है
बादलों ने भी भेजा न्यौता है।
