चाँद का खेल
चाँद का खेल
छुप कर चाँद बादलों की छाँव में
कोई खेल खेलता नजर आता है
जब नज़रे ढूंढ रही उसे बेकरारी से
वो और छुपता चला जाता है
उन्हों ने मेरी चाहत को
चाँद से कुछ यूँ जोड़ दिया
चाँद ने भी ना नज़र आ कर
दिल मेरा कुछ तोड़ दिया
मैं भी जैसे हार कर
वापस घर को जाने लगी
चाँद की किरणे भी
बादलो के पीछे मुस्कुराने लगी
चुपके से बहने लगी
मदमस्त सी शीतल हवा
और चाँद ने धीरे से
बादलो के पीछे से दर्शन दिया
मैं चमक सी गयी
चांदनी की दोधुली काया में
मुस्कुरा उठे मेरे होंठ
चाँद की इस माया पे!