चाँद और आईना
चाँद और आईना
आईना कहता इंसा देखता
मुझमे चेहरा अपना।
तमाम दाग छुपा देता
चहरे का मैं आईना।।
चाँद कहता है दाग है
मुझमे फिर भी हुस्न का
नाज़ मैं चाँद मैं आईना।।
चाँद ख़ास अकिकत का
चाँद पूर्ण मै पूर्णिमा का चाँद भाव चौथ का चाँद
चौदहवी का चाँद
हुस्न हैसियत का रुतबा अपना।।
चाँद दूज का एकरार
ईद का चाँद यकीन एतबार
जहां अपना।
सावन सुहाने मौसम में
बादलों में पनाह ठाँव अपना।।
ठंडी हवा के झोकों में
जुल्फों का साया
चाँद से चेहरे का सेहरा
अपना।।
रातों की तन्हाई में
चाँदनी चाँद का क्या
कहना।
मेरी पूनम की रौशनी
में उठता सागर के दिल
की गहराई से इश्क का समंदर
तूफां जम
ाने में मोहब्बत
का जज्बात अपना।।
दीवानों की नज़रों में मासूम
मासूका को नज़र आता हूँ
मैं चाँद जैसा चेहरा माँ बाप
की औलाद का रौशन चाँद सा
चेहरा अपना।।
चाँद कहता है सुन आईना
तू तो दाग छुपा लेता इंसा
के तमाम तू दागदार नहीं आईना।।
पूछता तुझसे चेहरे का
सबब दिल की तरह नाज़ुक
आह आहट पर भी टूटता बिखरता आईना।।
जमाने के संग संग चलता
जहाँ के गम खुशियों को
दुस्वारियों को झेलता जीता
बचपन से सुरूर का जूनून
कायनात अपना।।
तू तो आपने पराये का
दिल चहरे का फर्क अर्श फर्श आईना।
चाँद मैं दुनियां में नफरतों
के फर्क से बेगाना इश्क
मोहब्बत आशिकी का
तरन्नुम तराना मेरा दीवाना जमाना।।