बताओ ना
बताओ ना
क्यों मुझ पर ध्यान देते हो
जब रास्ता तुमने चुन ही लिया है
तो उस पर पूरी शिद्दत से जाओ ना
वादा जो खुद से कर लिया है तुमने
उसे पूरे दिल से निभाओ ना
बातों में तो भुला दिया तुमने
तो अब अपनी कलम और
ख़यालों में भी दफ़नाओ ना
फैसला तुम्हारा और मंजूरी
भी तुम्हारी
उसका ज़ोर खुद पर चलाओ ना
मैं तो एक मुसाफिर था,
दरिया मिला तो ठहर गया
पर प्यास अब तुम भी किसी
और दरिये में बुझाओ ना
साथ चले तो क्या चले
अब इस गुज़रते वक़्त को
अपने सीने से लगाओ ना
चलो मैं तो पागल था और हूँ
लेकिन तुम तो समझदारी से
जीवन निभाओ ना
या फिर अगर ना भले तुम,
ना भूले हम
फिर मिल के एक कदम
फिर से बढ़ाओ ना