बहरूपिया
बहरूपिया
जीवन एक रंगमंच है,
यहाँ बहरूपिया बन कर जीना पड़ता है।
लहरों जैसी जिंदगी हैं,
जिसे हर पल बनना और मिटना पड़ता है।
जीवन एक...............
नदियों की कलकलाहट को कौन समझा है भला,
उसमें खुशी की मधुरता या शोक की करवाहट है,
उसे अपने अंदर सबकुछ समेटे चुपचाप,
बह जाना पड़ता है।
जीवन एक .............।
थक सी जाती है ये कदम चलते-चलते यूं,
ऐसा लगता है कुछ टुट गया फिर से यूं।
बिखर जाती हैं हर रिश्तों की मोती इसतरह,
समझ नहीं आता क्या समेटे और किस तरह,
अपने जख्म को बस खुद ही सिल जाना पड़ता है।
जीवन एक...............।