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Hitanshu Pandey

Abstract

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Hitanshu Pandey

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बहने दो

बहने दो

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खामोश मेघों सुन लो तुम फसल आने में महिने दो

सूखे खेतों की नाली में झर झर पानी बहने दो

जिन पेड़ों की टहनी में बूंदें कतार में सजती थीं

उन पेड़ों की टहनी परभूखी लाश लटकती है।


टहनी के नाजुक काँधे को अब और कष्ट न सहने दो

सूखे खेतों की नाली में झरझर पानी बहने दो।

बैलों के दो जोड़ों को आस लगाए देखा है

सींगों से इशारा कर कयास लगाते देखा है।


बैल शहर न बिक जाएं उन्हें गांव में रहने दो

सूखे खेतों की नाली में झर झर पानी बहने दो

दाम प्याज के आंसू लाएं इस सलाद को क्या समझाएं

महंगाई के ताने फिर क्या बहरी सरकार पे चिल्लाये ?


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इनकी पक्की सड़कों में दो चार गड्ढे होने दो

सूखे खेतों की नाली में झर झर पानी बहने दो

एक किसान के घर मे ऋण से दो महीनों से,

जाने कब से हंसी ठहाका लगा नहीं।


एक अंकुर उसके बंजर में गुजरे साल भी उगा नहीं

अलमारी को रोज देखता जिसमे बचे हैं गहने दो

सूखे खेतों की नाली में झर झर पानी बहने दो।


अब बहुत कर लिया कहीं अतिवृष्टि तो कहीं आकाल

कहीं बन रही भूमि जर्जर कहीं कृत्रिम निर्मित हैं ताल

शुष्क वृक्ष है इंतजार में मल्हारी झूला पहने तो

खामोश मेघों सुन लो तुम फसल आने में महीने दो

सूखे खेतों की नाली में झर झर पानी बहने दो।


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