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brajesh kumar Ray

Inspirational

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brajesh kumar Ray

Inspirational

भास्करं नामस्तुभयं

भास्करं नामस्तुभयं

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सगर विश्व में घूम घूमकर नित उजियारा करते हो

हर स्थावर जंगम के प्राणों में ऊर्जा भरते हो

बता दिवाकर देश अन्य देखा है भारतवर्ष समान

जो तुमको अस्ताचल पर ढलते भी देता हो सम्मान

जब तेरा भव मिटता जाता और रश्मियाँ लुट जाती

उदयाचल पर निखरी आभा अस्ताचल पर छूट जाती

क्लान्त पथिक सा विरसभाव लेकर जब पश्चिम जाते हो 

विगत क्षणों की आभाओं पर जब न इतरा पाते हो

विनीत भाव से तब हम तेरे साथ खड़े हो जाते हैं

और तुम्हारे सत्कर्मों को नमन भाव से गाते हैं

अर्घ्य उठाये कोटि हस्त तावत न गिरने पाता है

प्रभापुञ्ज उदयाचल पर यावत न तुम्हारा आता है

यही आस है अटल हमारा लय है तो सर्जन होगा

वारि विन्दु का लय होगा तो निश्चय नभ गर्जन होगा

निखर के आओ उदयाचल इस अर्घ्य का अर्पण करते हैं

छठि माता के चरणों में यह भाव समर्पण करते हैं।



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