भारत
भारत
भारत की अखंडता पर,
आया घनेरा साया था।
देवी के भाँती पूजते थे जिस माटी को,
कीचड़ उसपर विधर्मिओं ने उछाला था।
अपनों से हारते हुए,
विधर्मिओं से लोहा ले रहे थे।
यह जानते हुए, विश्वासघात मिलेगा,
ग़ोरी को माफ़ी दे रहे थे।
न जाने कितने लूटेरों ने,
माँ भारती पर घात किया,
कभी खिलजी-गाज़ी-लोदी,
कभी बाबर-अकबर-आलमगीर ने
हैवानियत का प्रदर्शन किया।
तो कभी फिरंगिओं ने अपने,
हमें आधीन लिया।
अरे ! तुम भूल गए,
वीरगाथा अपने उन सिंघों की ?
याद आयी वीरता खंडित
सिर वाले गोहरा-बादल की,
क्षमा करने वाले पृथिवीराज,
हल्दीघाटी में अकबर को चित्त
करने वाले महाराणा प्रताप की
?
जौहर करने वाली रानी पद्मनी,
आलमगीर को शर्मसार करने
वाले राज़े शिवजी की ?
काँधे पर शिशु लिए,
वीरांगना कहलायी लक्ष्मीबाई है।
गीता को सीने से लगाकर,
क्रांति का बिगुल बजाकर,
शहीद-ऐ-आज़म 'भगत' कहलाए हैं।
मात्र एक रिवॉल्वर लिए हाथ में,
राइफलधारी अंग्रेज़ों को धुल चटाई है।
अरे! काकोरी काण्ड के नायक,
आज़ाद कहलाए हैं।
करके जी-हुज़ूरी अंग्रेजों की,
वे बापू कहलाये हैं।
सही मायने में तो आज़ादी,
अमर सुभाष ही लाये हैं।
यह वचन हो हमारा माँ भारती को,
कि अगर यह देश हो रथ अर्जुन का
तो हम इसके सारथी हों।
पूरे विश्व समूचे में मेरी
माँ भारती की आरती हो।