बेटी से पत्नी, पत्नी से माँ, ऐसे यूं बन जाती है वो
बेटी से पत्नी, पत्नी से माँ, ऐसे यूं बन जाती है वो
बेटी से पत्नी, पत्नी से माँ
ऐसे यूं बन जाती है वो।
जैसे छोटे से एक बीज से
एक घना पेड़ बन जाती है वो।।
माँ के आंचल से जो खेली,
पत्नी बन लहराई वो।
खुद माँ बनके अपने आँचल में
बच्चों को खिलाती है वो ।।
अपने चंचल मन के भीतर
कभी जो डर न देखा आज,
अपने ही बच्चों के ख़ातिर
बेवजह घबराती है वो।
दादी, नानी, चाची, मामी
सबकी बातें यू समझी वो ।
उसकी बातें सुन बोले लोग
सबकी दादी लगती है वो ।।
भाई से लड़ी, बहन से रूठी वो,
कर शिकायत रोयी भी है वो ।
आज देख अपने बच्चों को लड़ते
मन ही मन मुसकाई है वो।।
लक्ष्मी बनकर सुख लाती है वो
सीता बन हर दुख सहती है वो।
देवी दुर्गा का रूप धारण कर
संकट से बचाती है वो ।।
छोटी से बच्ची अपने आँगन की
अपने मे हमें समा लेती है वो ।
जाने कब बेटी से पत्नी
पत्नी से माँ बन जाती है वो ।
