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Varun Bhatt

Drama

3  

Varun Bhatt

Drama

बचपन

बचपन

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वो किस्से अपने, वो फ़साना अपना,

याद आ गया फिर वो ज़माना अपना।


ना रास्तों का पता ना मंजिल की फिकर,

वो बेपरवाह गलियों में खो जाना अपना।


दिनभर परिंदो की तरह आसमान में उड़ना,

फिर देर शाम लौट के घर आना अपना।


रोज़ नए किस्से, रोज़ नई कहानियां,

पर अंदाज वही जीने का पुराना अपना।


वो बचपन के दिन, वो बचपन की रातें,

वो बचपन ही था पूरा खजाना अपना।


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