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Suyash Kumar Pandey

Drama

3  

Suyash Kumar Pandey

Drama

" बचपन "

" बचपन "

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जिंदगी आगे बढ़ती गई,

मैं हार गया वक़्त जीत गया !

एक कसक होती है कि,

वो प्यारा बचपन क्यूँ बीत गया !!

जिंदगी आगे बढ़ती...!!


AK- 47 जैसा था,

वो मास्टर जी का मोटा डंडा !

मैं शाकाहारी था फिर भी वो,

हर विषय में देते थे अंडा !!


वो पेट-दर्द का बहाना,

ताकि स्कूल न जाना पड़े !

वो सारा घर पकड़ता था,

जब भी सुई लगवाना पड़े !!


अब कहाँ मिलने वाली,

वो बचपन की अपनी यारी !

कल साथ खेलने लगते थे,

चाहे आज हुई हो कितनी मारा-मारी !!


अब कहाँ मिलेगी वो,

जो संग में पोलियो पीने जाती थी !

बात चाहे खास न हो फिर भी,

कान में ही बताती थी !!


माँ मेला अकेले नहीं जाने देती थी,

आज सारी दुनिया घूम लिया

कभी मिली जो बचपन की कोई तस्वीर,

झट से उसको चूम लिया !!


वो खेल-खेल में लड़ना-झगड़ना,

वो होती रोज लड़ाई थी !

प्रेम को उसी दिन जाना था,

जब मिट्टी की गुड़िया बनाई थी !!


माँ गोद में ले ले हमको,

अतः नाटक करते थे सोने का !

वही तो एक मौसम था,

खुलकर हँसने और रोने का !!


जन्नत सी थी माँ की गोद,

आसमां था पापा का कन्धा !

आज थोड़ा सा ऊँचा उठने को,

करना पड़ता है कितना धंधा !!


अब तो बिन रंगों की होली है,

बिन पटाखों की दीवाली है !

बाहर की दुनिया भरी है पर,

भीतर की दुनिया खाली है !!


वो बचपन वाली नींद कहाँ,

मुश्किल से सोना आता है !

न खुलकर हँसना आता है,

न जीभर रोना आता है !!


दौलत और शोहरत के बदले,

एक अनमोल खजाना रीत गया !

एक कसक होती है कि, वो प्यारा

बचपन क्यूँ बीत गया !!

जिंदगी आगे बढ़ती...- २ !!




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