STORYMIRROR

Amit Kumar

Abstract

3  

Amit Kumar

Abstract

‘बापू’ का ज्ञान

‘बापू’ का ज्ञान

1 min
153

निराकार से आकार पा रहे ‘बापू’ मेरे सामने

चादर ओढ़े दांडी पकड़े खड़े हैं सबको थामने


सत्य अहिंसा दो मूलों पर देते सच्चा ज्ञान रे

इसी सीख से प्रेरित होकर मिला बापू नाम रे


दृढ़ इच्छा से एकाग्र लक्ष्य से होगा पत्थर रेत ये

बूँद बूँद से गागर भरता कभी ना हारो हार से


शूल चुभेंगे सब रोकेंगे थमकर फिर बढ़ जाना रे

अविरत बहती अग्नित धारा पाती सागर रूप रे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract