STORYMIRROR

varsha chaudhary

Abstract

4.8  

varsha chaudhary

Abstract

बाहर देखना चाहती हूँ

बाहर देखना चाहती हूँ

1 min
81



उस रेंगती नदिया के कदम

देखना चाहती हूँ

उस रोते अंबर की सूजी आँखों को

सेकना चाहती हूँ

क्यों घुट रहा,

ये मौन, देखना चाहती हूँ

बस एक बार,

मैं बाहर देखना चाहती हूँ।।


उन दौड़ते पर्वतों को,

ठहरा, देखना चाहती हूँ

क्यों तप रही है धरती

नब्ज़, देखना चाहती हूँ,

इस कुदरत की

तड़प देखना चाहती हूँ

बस एक बार,

मैं बाहर देखना चाहती हूँ।।


उस लंगड़ाती हवा के

टूटे पर देखना चाहती हूँ

कौन खा गया जंगल,

राक्षस,देखना चाहती हूँ

छोटे परिंदों के, बड़े, घर

देखना चाहती हूँ

बस एक बार

मैं बाहर देखना चाहती हूँ।।


उस सूरज की, मुस्कुराती

किरण, देखना चाहती हूँ

क्यों रहता है,उदास

चाँद का मन

देखना चाहती हूँ,

प्यासे झरने की रुदन,

देखना चाहती हूँ

बस एक बार

मैं बाहर देखना चाहती हूँ ।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract