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असमत

असमत

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जाने कोई किसी की असमत से कैसे खेल जाते  है

हाथ किसी के किसी के दामन पर कैसे पहुँच जाते है

ना जाने राखी पर अपनी बहना से कैसे नज़र मिलाओगे

लुट किसी की बहन की आबरू कैसे राखी बंधवाओगे 

 

क्या कोई सवाल नही आता खुद पर

कैसे कोई इलज़ाम नही लाता खुद पर

मार कर अपने अंदर का इंसान बन जाते हैं हैवान

ऐसा करने से क्या कोई बवाल नही आता खुद पर

कैसे करके तबाह किसी मासूम को , उसकी ज़िन्दगी निगल जाते  है

जाने कोई किसी की असमत से कैसे खेल जाते है 

 

 

क्या होगा जब तेरी बहन भी लूटी पिटी घर आएगी

बीच बाजार में, सरे आम कुत्तो से नोची जायेगी

कैसे आँख मिला सकेगा खुद से, खुद पर ही चिल्लाएगा

कैसे हिम्मत कर लेगा और खुद को पापी बतलायेगा

और अगर ऐसा हो गया तो बहना को क्या समझायेगा

तार तार हो चुकी तेरी बहना की इज़्ज़त कहाँ से लाएगा

जब हिम्मत नही दर्द बाँटने की, दर्द ही क्यों दे जाते है

जाने कोई किसी की असमत से कैसे खेल जाते हैं

 

मर्द नही होगा वो तो जो स्त्री का प्रतिकार करे

सच्चा मर्द वहीं होता है जो नारी का सम्मान करे

एक नारी तो नारी ही है बस अपना अपना नज़रिया है

जहाँ एक आँखों को नारी दिखती दूजे उसमे वासना कैसे देख पाते है

ना जाने कोई किसी की असमत  से कैसे खेल जाते है??


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