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अपने रास्ते!

अपने रास्ते!

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मंज़िल की परवाह नहीं की थी हमने,

जब तक रास्ता हसीन था,

चल पड़े थे उस सड़क पे,

जहाँ पे सुकून था,

बीत जाएगी ज़िंदगी यूँ ही हँसते-हँसतें,

फिर कहेंगे हम की,

हाँ, जी थी हमने अपनी ज़िंदगी अपने रस्ते!!


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