अंत-अनंत
अंत-अनंत


भोर हूँ, विभोर हूँ,
शान्ति का शोर हूँ,
पास हूँ, एहसास हूँ,
रात का निकास हूँ।
गीत हूँ, संगीत हूँ,
शब्द का मनमीत हूँ,
भय से, अचेत हूँ,
पर वक़्त से भयभीत हूँ।
वाद हूँ, संवाद हूँ,
बिन बात का विवाद हूँ,
न जाति से, न धर्म से,
हर कौम से आबाद हूँ।
रंग हूँ, बेढंग हूँ,
परछाइयों के संग हूँ,
बिखरे हुए सुराख में,
घुल जाऊँ, तो प्रसंग हूँ।
रक्त की फुहार हूँ,
रूह की पुकार ह
ूँ,
आफत की मझधार में,
ठहरा हुआ विचार हूँ।
ज्ञान हूँ, वरदान हूँ,
अपमान से अंजान हूँ,
रूप से, प्रारूप तक,
सम्मान का मेहमान हूँ।
सम्पूर्ण हूँ, सर्वत्र हूँ,
आकांक्षाओं का अस्त्र हूँ,
अर्थ से, अनर्थ तक,
आशाओं से सशस्त्र हूँ।
न साधू हूँ, न संत हूँ,
न इतिहास का कोई ग्रन्थ हूँ,
मैं अल्प हूँ, अत्यंत हूँ,
मैं अंत हूँ, अनंत हूँ।
मैं अंत हूँ, अनंत हूँ,
मैं अंत हूँ, अनंत हूँ।