अन्नदाता किसान
अन्नदाता किसान
एक-एक दाने से करता है सौ सौ दाने का निर्माण,
इसलिए कहते हैं अन्नदाता किसान।
हर दिन करता है वह श्रम,
बच्चों से ज्यादा मिट्टी से प्रेम,
सोने चांदी से भी ज्यादा प्यारे,
खेत खलिहान लगते हैं दुलारे।
मेहनत परिश्रम तेरा धर्म,
गर्मी वर्षा ठंड नित कर्ता कर्म ,
बैल ही उसका सच्चा भाई,
वह चाहता है मालिक की भलाई ,
मेहनत ही सबसे बड़ी पूजा,
इस से बढ़कर काम न दूजा,
मंदिर की घंटी बजाता है पुजारी ,
बैलों के गले की घंटी किसान को लगी प्यार।
गहने बेचकर धरती की गोद भरता है,
मानसून मौसम पर जुए का दाव लगाता है ,
ऐसा व्यवसाय कोई करता है,
जुआ के खेल में यह युधिष्ठिर हारता है।
देश का अन्नदाता ही भूखा प्यासा,
देश की अभिवृद्धि का विकास कैसा ,
सोचो और करो समस्या का समाधान ,
अब किसान को चाहिए विष्णु का वरदान ।
एक-एक दाने से करता है सौ सौ दाने का निर्माण,
इसलिए कहते हैं अन्नदाता किसान।