अकेलापन
अकेलापन
कभी कभी अकेलेपन में
भी जी लेता हूं मैं,
टूटे सपनों के प्यालों को जोड़कर,
दुख के घूंट पी लेता हूं मैं।
मंज़र ए इश्क देखने की चाह में
घर से निकला था यूं तो,
अब नफरत भरी इस दुनिया में झूठी
मुस्कुराहट के साथ जी लेता हूं मैं।
ढ़ूढ़ रहे थे जिस बाज़ार ए दुनिया में
दिल के करीब रहने वाला एक दोस्त,
राह ए मोहब्बत का हमसफ़र,
उम्र भर साथ रहने वाला रेहगुजर,
आज उसी दुनिया में
गुमनामी में जी लेता हूं मैं।
जहां अपनों के हाथ छूट गए,
जो करते थे वादे प्यार के,
छोटी सी बात पे रूठ गए,
देखें थे हसीन ज़िन्दगी
बिताने के सपने जो,
छन्न से वो टूट गए,
उससे छलके जो आंसू आंखो में,
उन्हें बारिश के पानी में
मिलाकर पी लेता हूं मैं।
इस अकेलेपन में भी आज,
खुशी खुशी जी लेता हूं मैं।