ऐसा बन तू
ऐसा बन तू
हो पथ पर यदि अंधकार
जलाओ तुम मशाल,
हो जाओ धीर समीर
बनकर विशाल ढाल।
कण को रौंदना छोड़कर
रौंद विशाल चट्टानों को,
संकट सामान समीर से लड़ जाए
ऐसा ले बना अपनी बाहों को।
संकट को अवसर रूप में देख
जीवन में ऐसी कल्पना कर,
विश्व कुचल ना दे
बन जा तू निडर।
मेहंदी की लाली क्या बनना
जो पल में रंग छोड़ दे
ठोक संकट के गगरी को तू
जो तुझ पर छाप छोड़ दे।