अहंकार नहीं नवकार
अहंकार नहीं नवकार
अहंकार का नशा होता है खराब, सिर चढ़कर बोलता है ,रिश्तो को करता है तार-तार।
सुख ,शांति ,समृद्धि का हरण कर, मानव मूल्यों पर करता है बार।।
अहंकार में लंकापति रावण और कौरवों के कुल, वंश का हुआ था सर्वनाश।
अहिंकार है सबसे बड़ा शत्रु, बुद्धि विवेक भी छोड़ देते हैं उसका साथ,
अहंकारी का होता है सत्यानाश।।
काया पर मत कर तू गुमान,
मौसम की तरह बदलती है काया, यह तू जान।
लक्ष्मी होती है चंचल ,माया पर मत कर तू मान ,हर लेती है यह शोहरत।।
एक दिन आएगा मौत का बुलावा, धन -दौलत, रूप- खजाना ,
सब यहीं पड़ा रह जाएगा, यह तू मान।
मुट्ठी बांधे आए थे, हाथ पसारे है जाना,
यही है दुनिया की रीत, हे मानव तू पहचान।।
मैं -मैं तू करना छोड़ ,मद का है ना कोई ओर छोर।
सद् संस्कारों को तो आचरण में धर, मानवता की माला को हृदय में धारण कर।।
अहंकार, मान ,अभिमान, घमंड,मद यह तो है भाई - भाई।
जिसके घर आ जाते, नहीं छोड़ते पाई पाई।।
क्रोध,मान ,माया, लोभ, यह तो है संसार भोग का सार।
तन- मन- धन तो है नश्वर, विरक्ति से ही मिलेगा ईश्वर।।
अहंकार की कार में, हे मानव तू मत कर सफर।
णमोकार को जप ले ,संसार सागर से जाएगा तर।।
कर्म पथ को बनाएगा सुगम, जीवन में प्रेम शांति, सुख का रहेगा बसर।
अहंकार को जो तू अपनाएगा, तो अमन, चैन को जाएगा तरस।।
आओ हम सब मिलकर घमंड भाव का परित्याग करें।
सद्गुणों का श्रंगार कर, मानवता की माला की खुशबू से, जन -जन का कल्याण करें।।
जग का कल्याण करें।।