"निडरता का पाठ"
"निडरता का पाठ"
डरो न बेटी बनो चंडिका , दानव से टकराना है ।
आग जलाओ मन के भीतर ,आज नहीं घबराना है ।
लेकर घर से चलो कटारी , और निडरता आँखों में ।
नहीं चिरैया हो ऐसी जो , छिप कर बैठी शाखों में ।
हाथ बढ़े जो तुमको छूने , उसको काट गिराना है ।
आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।
तन से ज्यादा मन बल ही अब ,तुम्हें सुरक्षित रख पाए ।
नागिन बन फुफकारो ऐसे , दृग में खून उतर आए ।
जिनकी बेटी लड़ीं काल से , पाया वही घराना है ।
आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।
सीखो अब तलवार चलाना , जूडो और कराटे भी ।
खूनी पंजा काट गिराओ , धरो गाल पर चांटे भी ।
हिम्मत से तुम करो सामना , ज़रा नहीं कतराना है ।
आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।
अपनी रक्षा खुद करनी है , कौन बचाने आयेगा ।
नहीं पुकारो कातर स्वर में ,अरि सशक्त हो जायेगा ।
नहीं हारना तुमको बेटी , उल्टा उसे हराना है ।
आग जलाओ मन के भीतर , नहीं आज घबराना है ।
मात-पिताओं से अपील है , बेटी में साहस भर दो ।
चूड़ी नहीं कलाई में हो , पर कटार कर में धर दो ।
अबला हो तुम कोमल हो तुम , कहकर नहीं डराना है ।
आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।