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माया अग्रवाल

Inspirational

4.2  

माया अग्रवाल

Inspirational

"निडरता का पाठ"

"निडरता का पाठ"

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डरो न बेटी बनो चंडिका , दानव से टकराना है ।

आग जलाओ मन के भीतर ,आज नहीं घबराना है ।


लेकर घर से चलो कटारी , और निडरता आँखों में ।

नहीं चिरैया हो ऐसी जो , छिप कर बैठी शाखों में । 

हाथ बढ़े  जो तुमको छूने , उसको काट गिराना है ।

आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।


तन से ज्यादा मन बल ही अब ,तुम्हें सुरक्षित रख पाए ।

नागिन बन फुफकारो ऐसे , दृग में खून उतर आए ।

जिनकी बेटी लड़ीं काल से , पाया  वही घराना है ।

आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।


सीखो अब तलवार चलाना , जूडो  और कराटे भी ।

खूनी पंजा काट गिराओ , धरो गाल पर चांटे भी ।

हिम्मत से तुम करो सामना , ज़रा नहीं कतराना है ।

आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।


अपनी रक्षा खुद करनी है , कौन  बचाने  आयेगा ।

नहीं पुकारो कातर स्वर में ,अरि सशक्त हो जायेगा ।

नहीं  हारना  तुमको  बेटी , उल्टा उसे  हराना है ।

आग जलाओ मन के भीतर , नहीं आज घबराना है ।


मात-पिताओं से अपील है , बेटी में साहस भर दो ।

चूड़ी नहीं कलाई में हो , पर कटार कर में धर दो ।

अबला हो तुम कोमल हो तुम , कहकर नहीं डराना है ।

आग जलाओ मन के भीतर , आज नहीं घबराना है ।



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