अधूरे काम जो कुछ है......
अधूरे काम जो कुछ है......
कहर कुदरत का ऐसा है,
कि कल क्या हो, ख़बर किसको,
अधूरे काम जो कुछ हैं,
चलो पूरा करें उनको....
कई रिश्ते पुराने हैं,
कई यादें पुरानी हैं,
चलो ताजा करे उनको,
चलो कर लें नया उनको...
वो जिनकी गोद में तुमको,
सुखों की छाँव हासिल थी,
के अब तरसा करे है वो
कि कैसे सब भुलाएँगी....
जो तुम आवाज दोगे... माँ,
तो कानों में घुले मिश्री,
तेरी आवाज सुनकर उनकी
आंखें जगमगाएंगी ....
सहोदर जो रहे सब साथ
बचपन में, मगर हैं दूर
किसी मुश्किल में पर अब भी,
उन्हीं की याद आएगी...
ऐ रब कुछ कर जरा ऐसा,
ये दूरी दूर हो जाए,
कि कुनबा भाई-बहनों का,
दीवाली मिल मनाएगी..
कि हम सब साथ होंगे,
फिर खुशी का दौर आएगा,
कि गूंजेंगे ठहाके,
महफिलें भी जाग जायेंगी.....
अजीज- ए- दिल जो रिश्ते थे,
मगर अब बिखरे- रुखे हैं,
चलो चुना करे उनको,
चलो सींचा करें उनको...
जहां हैं बंद दरवाज़े,
कि कुछ कड़वी सी यादों पर,
चलो खोलें वे दरवाज़े,
भूला दें तल्ख यादों को...
जो बंधन कल तो गहरे थे,
मगर अब फीके-फीके हैं,
चलो इक बार फिर भिगो दें,
गहरे रंगों से उनको..
चलो बचपन के साथी जो
हमें सारे ही प्यारे थे ,
उन्हें ढूंढे, करे बातें, जीएं बचपन,
हाँ ...कुछ पल को.....
जो रूख घूंघट में देखा था,
झुकी नजरों से छुप छुप कर,
लिया रुखसार हाथों में ,
तो जन्नत मिल गयी हमको....
जिन्हें महफ़ूज़ रखते थे,
ज़माने की हवाओं से,
चलो उनकी बलाएँ लें,
करें महफ़ूज़ फिर उनको.....
कि जिनके हाथ में मेरी भी
किस्मत की लकीरें हैं,
वो बच्चे थाम लें जब हाथ,
किस्मत जगमाएगी...
कहर के दिन जो आए हैं,
के ये भी बीत जाएंगे,
जहाँ फिर मुस्कुराएगा,
सुकूं फिर लौट आएंगी..
जहाँ के दर्द से आंखें,
जो रोईं, मुस्कुराएगी,
सुबह होगी कि काली रात,
यह भी बीत जाएगी....
कि आंखों की नमी को,
रोक लो, समझा लो तुम उनको,
ज़माने भर की खुशियां,
फिर से झोली में समायेंगी,
जरा बातों को मेरे गौर
कर लेना मेरे प्यारे,
कि जब होंगे नहीं हम,
मेरी बातें याद आएगी।
