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अजय एहसास

Abstract

3.8  

अजय एहसास

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अच्छा नहीं

अच्छा नहीं

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271


दीप बनकर जलो तो जलो ठीक है

आग बनकर भड़कना तो अच्छा नहींं।

ज्योति बनकर जलो ज्ञान की ठीक है

अहं करके चहकना तो अच्छा नहीं।


रास्ते में उजाला सभी के बनों

कर अँधेरे थिरकना तो अच्छा नहीं।

दूसरों का सहारा हमेशा बनों

बेसहारा बनाना तो अच्छा नहीं।


प्रेम से तुम बुराई को भी मात दो

जंग से जीत जाना तो अच्छा नहीं।

बाती बनकर जलो तुम दिये की सदा

दूसरों से भी जलना तो अच्छा नहीं।


दीप की लौ से जलकर उजाला करे

औरों का घर जलाना तो अच्छा नहीं।

फर्श से अर्श जाती है लौ ये सदा

अर्श से फर्श गिरना तो अच्छा नहीं।

दीप जलकर किया करते है रोशनी

दूसरों को जलाना तो अच्छा नहीं।


धीमे धीमे जलो शीतल हो रोशनी

ज्वाला बनकर दहकना तो अच्छा नहीं।

दूर करते अँधेरे धरा के चलो

उसको चादर से ढकना तो अच्छा नहीं।


रूप सुन्दर लगे रोशनी यूं करो

आँखों का चकमकाना तो अच्छा नहीं।

तुम उजाले स्वयं में समाहित करो

बन अंधेरे मचलना तो अच्छा नहींं।


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