Geeta Sharma
Abstract
कोरोना तूने
परिवारों को मिलाया
अच्छा है तू
परंतु नहीं।
यह नजारा
तेरी याद आई
जिन लोगों से हम कतराते थे उनका साथ तस्लीम किया जिन लोगों से हम कतराते थे उनका साथ तस्लीम किया
जिंदगी ने हमारे साथ बड़ी बेवफाई की, जमाने भर में मेरी बड़ी ही रुसवाई की। जिंदगी ने हमारे साथ बड़ी बेवफाई की, जमाने भर में मेरी बड़ी ही रुसवाई की।
सृष्टि के आरम्भ से, अविरल प्रेम का अमृत बहे सर्व के भीतर - बाहर। सृष्टि के आरम्भ से, अविरल प्रेम का अमृत बहे सर्व के भीतर - बाहर।
पिता का वचन पूरा करने को, चौदह वर्ष गए हो वन को। पिता का वचन पूरा करने को, चौदह वर्ष गए हो वन को।
फिर होगी रौशनी जीवन में, आशा का चमकता वो सूरज याद है। फिर होगी रौशनी जीवन में, आशा का चमकता वो सूरज याद है।
उम्र भर मैं कविता लिखती रही कभी कुछ तो कभी कुछ. उम्र भर मैं कविता लिखती रही कभी कुछ तो कभी कुछ.
जाने कितनी धारणाएँ जो निर्मित है मन के बारे में अंततः मन स्वीकार्य होगा। जाने कितनी धारणाएँ जो निर्मित है मन के बारे में अंततः मन स्वीकार्य होगा।
ब्रह्मांड- ऊर्जा, देती, निश्चयी संदेश, एक सकारात्मक ऊर्जा करती,व्यक्त। ब्रह्मांड- ऊर्जा, देती, निश्चयी संदेश, एक सकारात्मक ऊर्जा करती,व्यक्त।
हृदय में बसा कर तुम, आंखों को दिये सपने। क्या मुझसे हुई थी खता, कि रिश्ते ही तोड़ गये हृदय में बसा कर तुम, आंखों को दिये सपने। क्या मुझसे हुई थी खता, कि रिश्ते ही...
कलकल बहती नदी की जलधारा और साथ में थे। कलकल बहती नदी की जलधारा और साथ में थे।
गांधी को गढ़ने से पहले खुद को तो जरा गढ़ लीजिए, गांधी को गढ़ने से पहले खुद को तो जरा गढ़ लीजिए,
सरल सहज सी हिन्दी भाषाओं की रानी है। सरल सहज सी हिन्दी भाषाओं की रानी है।
आत्मनिर्भर हो सब क्षेत्र पर आत्मविश्वास से भरी आत्मनिर्भर हो सब क्षेत्र पर आत्मविश्वास से भरी
कल्पवृक्ष के समान हमारी हर इच्छाओं को पूरी करते कल्पवृक्ष के समान हमारी हर इच्छाओं को पूरी करते
प्राप्त किए अपने अनुभवों को मन:दर्पण में उतार लेता हूँ. प्राप्त किए अपने अनुभवों को मन:दर्पण में उतार लेता हूँ.
तजुर्बे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूं, कोई प्यार जताए तो जेब संभाल लेता हूं. तजुर्बे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूं, कोई प्यार जताए तो जेब संभाल लेता हूं...
फिर एक आवाज अंधेरे में आंखें खोलो कहो जो देखा। फिर एक आवाज अंधेरे में आंखें खोलो कहो जो देखा।
वो जहां पर असमा और धरा मिल जाते हैं छोर मिलते ही नहीं पर साथ में खो जाते हैं। वो जहां पर असमा और धरा मिल जाते हैं छोर मिलते ही नहीं पर साथ में खो जाते हैं।
कवियों लेखकों की लेखनी का उद्गार है निराला प्रेमचंद पंत का ये संसार है कवियों लेखकों की लेखनी का उद्गार है निराला प्रेमचंद पंत का ये संसार है
रूह बन जाते हैं यों कुछ खास लोग, फिर कहाँ सफ़र अधूरा वो रख पाते हैं। रूह बन जाते हैं यों कुछ खास लोग, फिर कहाँ सफ़र अधूरा वो रख पाते हैं।