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अबला बनाम सबला

अबला बनाम सबला

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शबरी, गार्गी, माद्री, कुंती, कौशल्या का देश,

अरुंधति, गांधारी, कृष्णा, उमा के संग उमेश।


लक्ष्मी संग नारायण शोभित, राधा संग ऋषिकेश,

सरस्वती संग ब्रह्मा शोभित, सीता संग अवधेश।


निर्मात्री संपूर्ण जगत की, अधिष्ठात्री शक्ति की,

धन विद्या की देवी माँ, मार्ग यही मुक्ति की।


सबला रही हमेशा से जो 'अबला 'क्यों कहलाई ?

उत्तर ढूँढे उसका जिसने शोभा सदा बढ़ाई।


कई- कई आक्रांता आकर संस्कृति नष्ट किए हैं,

गौरव-गरिमा की रक्षक जो उन पर सितम ढहे हैं।


मुक्त यहाँ रहने वाली नारी पर्दे में सिमटी,

द्वार हुए सब बंद, बंद थीं घर की सारी खिड़की।


शिक्षा-दीक्षा ज्ञान की बातें बहुत- बहुत थीं दूर,

सिमट गई घर के आँगन में, थी अशक्त मज़बूर।


परंपरा यह धीरे-धीरे आगे बढ़ती जाती,

रंग-ढंग फिर आर्य देश की यूँ ही गई बिगड़ती।


आगे-आगे जब महिलाएंँ हुईं बहुत लाचार,

स्वाभिमान की रक्षा के हित जाग उठी ललकार।


झकझोर जगाई काली को जो अंदर में थी सोई,

स्वत्व की रक्षा करने को संघर्ष के दाने बोई।


मेधा, चंदा, मैरी, वेदी, सुषमा, उमा, सुनीता,

रक्षा करने आर्य भूमि की आज निर्मला सीता।


कंधे से कंधा मिलकर ही युग नूतन सुधरेगा,

आजाद हिंद में रहने का अनुपम अनुभव निखरेगा।


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