आखिर ये क्यों होता है ?
आखिर ये क्यों होता है ?
आखिर ये क्यों होता है ?
इंसान खुदगर्ज कैसे हो सकता है ?
कहने को तो सबका हमदर्द बताता है
लेकिनं अंत समय में सबको धोखा दे जाता है।
अपने जीवन की माया को खुद समझ नहीं पाता है।
खुद भटकता है और सबको भटकाता है।
आखिर ये क्यों होता है ?
इंसान मौत से क्यों घबराता है ?
जब वो जीवन और मृत्यु की माया को पहचानता है।
फिर भी नादान बना संसार का मोह पालता है।
जानता है की चार दिन का है यह जीवन ,
फिर भी स्वार्थी बना सबको जलाता है।
आखिर ये क्यों होता है ?
इंसान चाहता है की मै स्वर्ग मे जाऊँ
पर नरक से क्यों कतराता है ?
दूसरों को दुखी कर खुद खुश होता है
और अपना जीवन नरक बना लेता है।
घमंड की आंधी मे अपना वर्चस्व गवां देता है।
आखिर ये क्यों होता है ?
चाहे तो इस संसार में अपने को
सिद्ध कर सकता है।
प्यार और ममता से
सबको सुखी कर सकता है।
लेकिन चंद पैसो और स्वार्थ के कारण
अपने चरित्र को मिटा लेता है।
यदि वो खुद को पहचान ले तो
सारा संसार पलट सकता है
अपनी करुणामयी सादगी से
सबको हर्षित कर सकता है।
आखिर ये क्यों नहीं होता ?
आखिर ऐसा क्यों नहीं होता है?
