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हमारे बचपन की यादें

हमारे बचपन की यादें

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फ्रेंड्स आजकल मैं अक्सर देखती हूँ, बच्चे जब भी फ्री होते हैं तो मोबाइल में गेम्स खेलते हैं। यहाँ तक कि जब वह किसी के घर जाते हैं या कोई रिलेटिव उनके घर आता है तो भी वह मिलकर मोबाइल में ही घुसे रहते हैं। हमारे साथ भी ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ जब भी कोई रिश्तेदार आता है तो वो खुद चैन से बैठने के चक्कर में मोबाइल बच्चों को दे देते हैं और बच्चे 3-4 घंटे तक मोबाइल में घुसे रहते हैं। उनके बच्चों के साथ साथ हमारा बच्चा भी मोबाइल में खो जाता है। कई बार मुझे तो बहुत गुस्सा आता है।

एक बार ऐसे ही सबके जाने के बाद मैंने बेटे को कहा कि आप कज़न जब भी मिलते हो तो सब लोग बस मोबाइल में बिजी रहते हो, गेम खेलते हो, मिलजुलकर कुछ खेल क्यों नहीं खेलते ? तब बेटे ने कहा वह मोबाइल में गेम्स खेलते हैं तो मैं भी उनके साथ खेलता हूँ। फिर मैंने बेटे को बोला जैसे मैं आपको अपने बचपन की बातें बताती हूँ तो आपको कितना अच्छा लगता है ऐसे तो आपकी तो बचपन की कोई यादें ही नहीं रहेंगी, आप अपने बच्चों के साथ क्या शेयर करोगे तो बेटा सोचने को मजबूर हो गया पर ताली एक हाथ से नहीं बजती। हमें अपने बच्चों को मोबाइल से दूर करके उनके संपूर्ण विकास के बारे में सोचना होगा। प्रतिदिन उनको पार्क जरूर ले कर जाए। अपने बचपन के खेल खिलाएं।

दोस्तों हमारे बचपन में हमारे पास मोबाइल नहीं था तो क्या तब हम लोगों का टाइम पास नहीं होता था। तो चलिए दोस्तों अपना बचपन एक बार फिर से मेरे साथ जी लीजिए।

हम लोग तो छुट्टियों में अपनी मौसी के घर जाते थे अपने कज़नस के साथ खूब मस्ती करते थे। दोपहर को जब सब सो रहे होते थे तो हम चुपचाप बाहर निकल जाते थे। कभी किसी के घर की डोर बेल बजा देते तो कभी किसी के घर की बहुत मजा आता था।फिर कभी किसी की गाड़ी खड़ी होती थी तो उसके पहिए की हवा निकालने में जो मजा आता था सस्स्स्स्स् कि जो आवाज आती थी बड़ी ही मधुर ध्वनि लगती थी।

रात को जब लाइट चली जाती थी तो मिलकर हम लोग अंताक्षरी खेलते थे मजा आता था। गर्मी के दिनों में हम छत पर सोते थे पहले छत पर पानी की बौछार करते थे, फिर बिस्तर लगा कर वहाँ रात तक बातें करते रहते थे। मेरी स्वीटी दीदी हमें आसमान में सप्त ऋषि और ध्रुव तारा यह सब दिखाती थी।

जब हम लोग मिलकर कैरम खेलते थे तब हमारी सुमन दीदी इतनी बढ़िया प्लेयर थी कि लगभग सारी गिट्टी उनके हाथ लग जाती थी। और हम लोग बेचारे 1-1 गिट्टी के लिए तरसते थे।तब दीदी हमें पुरानी फिल्मों के जमींदार से कम नहीं लगती थी। और हम बेचारे गरीब कभी कोई भूली भटकी गिट्टी हमारे हाथ आ पाती थी।और सच में आज भी दीदी को कैरम में कोई नहीं हरा सकता। सैल्यूट है दी आपको।

एक और बात बताती हूँ जब सबके यहाँ नए-नए लैंडलाइन फोन लगे थे तो उसमें एक नंबर था जिसे प्रेस करके रिसीवर रख दो तो फोन में बेल बजती थी कि जैसे किसी का फोन आया हो। मैं इस काम में बड़ी होशियार थी तो मैं अपनी दीदी के यहाँ जब भी जाती थी तो मैं यही काम करके चुपचाप कहीं छुप जाती थी। दीदी जैसे ही दौड़ के फोन उठाती थी तो दूसरी तरफ से कोई बोलता ही नहीं था। दो-चार बार मेरे ऐसा करने के बाद दीदी को पता चल जाता था कि ये मेरी शरारत है।

गर्मी की दोपहर में हम फ्रेंड्स लोग मिलकर जो लूडो खेलते थे हमारा गेम 2-2,3-3 घंटे तक खत्म नहीं होता था। ना हमें खाने का होश ना कुछ पीने का होश। वैसे ही जैसे आजकल बच्चों को मोबाइल के सामने कुछ नहीं दिखता ऐसा आलम हमारा लूडो के साथ था।

हमारे पड़ोस में एक 5 साल का बच्चा रहता था तो 1 दिन जैसे ही वह मेरे घर टीवी देखने आया तो मैंने उसे बोला, "अरे तुम पोलियो ड्रॉप्स पीने नहीं गए।" वो बोला, "मैं तो बड़ा हूँ छोटे बच्चे पीने जाते हैं।" तो मैंने भी उसके मजे लेने के लिए कह दिया, "अरे क्या बात करते हो तुम्हारे दोनों चाचू अभी पीने गए हैं पोलियो ड्रॉप्स। और देखो तुम्हारे पापा और दादू भी जा रहे हैं तुम्हें झूठ बोल दिया उन्होंने बहुत टेस्टी होती है जाओ पीकर आओ।" और वह फटाफट भाग कर गया फिर वापस आकर बोला, " दीदी आप मुझे उल्लू बना रहे थे मेरे चाचू तो काम पर गए हुए हैं मेरे दादू शॉप पर बैठे हैं। मेरी मम्मी ने बोला है कि 4 साल तक के बच्चे पीने जाते हैं मैं तो 5 का हूँ।"

छुट्टी वाले दिन हम लोग कभी-कभी खेतों में जाते थे चटाई और खाने- पीने का सामान लेकर पिकनिक मनाते थे बहुत मजा आता था।

हम तो खो-खो, गिल्ली- डंडा, छुपन -छुपाई लगड़ी-टांग, आँख-मिचौली, एक और गेम होता था लाल साड़ी आजा टीका लगा जा जिसमें दो ग्रुप बनते थे किसी को इस गेम का नाम याद हो तो बताना, विषम-अमृत और न जाने क्या-क्या कुछ के तो नाम ही याद नहीं है इतने सारे गेम सुनकर मेरा बेटा तो हैरानी हो गया। कोशिश करती हूँ, उसे और उसके फ्रेंड्स को भी अपने पुराने गेम खिलाने की और बच्चे पसंद भी करते हैं।


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