2040 की एक शाम
2040 की एक शाम
"फाइनली आज से गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई, अब तो सब मिल कर खूब मज़े करेंगे। हम सब मिल कर देर रात तक खेलेंगे। क्यों ना आज हम सब हाईड एंड सीक खेलें।"
"हाईड एंड सीक ...हाँ-हाँ, यही खेलते हैं आज।" सभी बहुत खुश थे और हाथ छटवा कर यह तय करने में लग गए कि सबसे पहले दाम कौन देगा।
"रानू इस बार दाम दोगी।" सबने हँसते हुए मिलकर कहा।
रानू को अपनी आँखें बंदकर एक से सौ तक गिनती बोलने को कहा। उसने आँखें बंदकर ऊँची आवाज़ में गिनती गिनना शुरू किया। जैसे ही गिनती शुरू हुई, वैसे ही बच्चे दौड़कर अलग-अलग कोने में छूपने लगे। गिनती सौ तक पहुँचते ही रानू ने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा-"मैं आ रही हूँ।" सारे बच्चे सावधान हो गए ताकि रानू को पता न चल सके कि वे कहाँ-कहाँ छुपे हैं। रानू ने अब अपनी आँखें खोलकर एक-एक को ढूँढना शुरू किया। धीरे-धीरे एक के बाद एक सब मिलने लगे। लेकिन बिनी अब भी कहीं नज़र नहीं आ रही थी।
वह बिनी को ढूंढने की कोशिश में जुटी थी और बाकी बच्चे छुपी हुई बिनी का हौंसला बढ़ाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे-"छुपे रहना भाई, आया है सिपाही..." रानू के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई.
"हे बोट, स्टार्ट द गेम...!"
रानू इस आवाज़ से चौंककर अचानक अतीत से आज में लौट आई. उसने ठंडी साँस भरी और ड्राइंग रूम में अपने आसपास नज़र दौड़ाई. उसके पास ही सोफे पर सात साल का टोरा अपने दोस्त बोट के साथ कोई रेसिंग गेम खेल रहा था। लाखों की आबादी वाले इस भरे-पूरे मेट्रो शहर में बोट ही टोरा का इकलौता दोस्त है और टोरा का ही क्यों, यह तो आज 2040 में हर बच्चे का इकलौता दोस्त है। कृत्रिम बुद्धि वाला रोबोट दोस्त-बोट। टोरा बहुत कम बात करता है। उसमें भी ज़्यादातर बोट से ही।
पच्चीस के टेम्प्रेचर पर एसी चलने के बावजूद रानू पसीने से तर-ब-तर हो रही है। उसे कुछ घुटन-सी महसूस हुई. उसे लगा कि साँस लेने में दिक्कत हो रही है और उसे बाहर खुले में निकल जाना चाहिए. लेकिन यहाँ बाहर तो निकला ही नहीं जा सकता। बाहर इन दिनों बेतहाशा गर्मी पड़ रही है। तापमान का पारा पचपन-साठ को छू रहा है। गरम हवाओं के थपेड़े चल रहे हैं। इसीलिए उसने पूरे घर को कवर्ड कर लिया है। शहर के बाकी घरों की तरह खिडकियों से शीशे तो दूर की बात भारी पर्दे तक नहीं हटते कि धूप का कोई रेशा भीतर आ सके। उसने एसी का रिमोट उठाया और टेम्प्रेचर बीस पर टिका दिया। कुछ देर के लिए शरीर को राहत मिली पर मन अभी भी बेचैन था। वह बार-बार पुराने दिनों की याद में खो जाती।
जब से उसने सोशल साइट पर मौसी की डेथ का मैसेज पढ़ा था। तब से ही उसके मन में उथल पुथल मची हुई थी। कितने दिनों से नहीं मिल पाई थी वह अपनी मौसी से। कुछ सालों पहले उसे किसी ने बताया भी था कि मौसी की तबीयत बहुत खराब रहती है और तुमको अक्सर याद करती रहती है। कभी वक़्त ही नहीं निकाल पाई। सच तो यह है कि मैंने कभी वक़्त निकालने की कोशिश ही नहीं की। मौसी का शहर यहाँ से डेढ़ सौ किमी ही दूर था और आठ सौ किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली मैग्लेव ट्रेन से वह ढाई-तीन घंटे में उनसे मिलकर लौट भी सकती थी।
रानू मौसी के बहाने अपने ही बचपन में फिर खोने लगी थी। वे दिन याद आए जब वह मौसी के घर छुट्टियों में ज़रूर जाया करती थी। मौसी वर्किंग वूमेन थी। वे घर के साथ ऑफिस की जिम्मेदारियाँ भी बखूबी निभाती। इस बीच घर में आने-जाने वालों का भी खूब ख़याल रखती। मायके या ससुराल में कोई भी काम होता तो सबसे पहले मौसी से सलाह-मशविरा ज़रूर होता। वह मौसी से बहुत प्रभावित थी और बड़े होने पर उन्हीं की तरह बनना चाहती थी। मौसी ने उसे विज्ञान पढ़ने के लिए प्रेरित किया था और इसी वजह से उसने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए विज्ञान विषय चुना था। यहाँ तक कि ग्रेज्युशन के बाद की पढाई उसने मौसी के पास रहकर ही पूरी की थी। मौसी उसे अपनी बेटी की तरह ही रखती और उसकी हर छोटी-बड़ी ज़रूरतों का ध्यान रखती थी। लेकिन हर सपना पूरा ही हो, ऐसा कहाँ होता है। योग्यता और करियर तय होने के बावजूद ऋषभ की नौकरी के कारण उसने हाउसवाइफ होना चुना।
अचानक उसकी नज़रें टीवी स्क्रीन पर गई तो याद आया कि वेजिटेबल्स और ब्रेड आर्डर करना है। उसने मोबाइल पर क्लिक किया और होम डिलेवरी की रिसिप्ट के मुताबिक ऑनलाइन पेमेंट कर दिया। टोरा अपने बोट के साथ खेल में लगा हुआ है।
डोरबेल बजी और फेशियल रिकोग्नेशन सिस्टम ने फेस रीडिंग कर चेहरा पहचानते हुए ऋषभ को घर के अंदर आने दिया। उसने अपना सफ़ेद रंग का हिट रेसिस्टेंस कोट उतारकर हैंगर पर टांग दिया। इतनी गर्मी में इन दिनों यह ओवरकोट न पहना हो तो बाहर निकलना ही मुश्किल है। ओवरकोट के साथ चेहरे पर मास्क भी लगाना पड़ता है। शहरभर में पेड़-पौधे कम ही दिखते हैं। पेड़-पौधों पर चहचहाते पंछी तो शहर में कब से खत्म हो चुके हैं, बेचारे इतना तापमान कहाँ सह पाते। चारों तरफ़ बड़ी-बड़ी इमारतें और चौड़ी सड़कों वाले फ्लायओवर्स। बारिश कभी-कभार होती है। कुछ जगह तो कृत्रिम बारिश करवाना पड़ती है, जहाँ तापमान बढ़ने से बीमारियाँ फैलने लगती है। मौसम का कोई ठिकाना नहीं, कभी खूब तेज़ ठंड पड़ती है तो कभी गर्मी पड़ने लगती है। कभी तो एक ही दिन में मौसम बदल जाता है। कैंसर तो अब क्योरेबल हो चुका है पर नई-नई तरह की कई बीमारियाँ दिखने लगी है। ग्राउंड वाटर लगभग खत्म होने वाला है। जैसे-तैसे कुछ नदियों के पानी से ही शहर की प्यास बुझती है। सीवेज रिसायक्लिंग टेक्निक से साफ़ हुआ पानी उपयोग करना पड़ रहा है। पीने तक का पानी पेट्रोल के भाव बिक रहा है। नहाने के लिए स्पांज का यूज किया जाता है।
ऋषभ सोफे पर बैठा तो आयओटी कंट्रोल्ड रोबोट ने उसे पानी की बाटल लाकर दी। बाटल से पानी गटकते हुए उसने टोरा की तरफ़ मुस्कुराते हुए एक नज़र डाली और मोबाइल पर स्क्रोल करना शुरू कर दिया। वह अभी स्क्रोल कर ही रहा था रानू उसके पास आकर बैठ गई. उसने ऋषभ से पूछा-"डिनर में क्या बनेगा? ' उसने कुछ देर कोई जवाब नहीं दिया फिर मोबाइल पर नज़रे गडाए ही बोल पड़ा-" जो ठीक लगे।"
वह उसे मौसी की डेथ के बारे में बताना ही चाहती थी कि तभी टॉम का वीडियो कॉल आया। टॉम ने बताया कि वे दोनों अगले मंडे इंडिया वापस आ रहे हैं। ऋषभ के चेहरे पर चिंता के भाव थे। उसने पूछा-"अचानक क्यों?" टॉम बता रहा था-"वही रोबोट वाला चक्कर...रोबोट तो जैसे अब हाथ धोकर इंसान के पीछे पड़ गया है। जगह-जगह से इंसानों को नौकरियों से खदेड़ा जा रहा है।"
ऋषभ ने कहा-"अरे हाँ, इसने तो यहाँ भी लाखों नौकरियाँ छीन ली है। ये बेरोज़गार लोग अब कैसे जियेंगे?" इतना कहते हुए उसे अपनी नौकरी पर खतरा मंडराता नज़र आया। टॉम ने कहा कि माँ से बात करा दीजिए तो उसने फोन रानू को पकड़ा दिया। लेकिन ऋषभ के मन में नौकरी का डर बड़ा हो गया।
टॉम रानू से उन दोनों पति-पत्नी के वापस आने के बारे में बताता रहा और आखिर में उसने अपने बेटे टोरा के बारे में पूछते हुए कॉल डिस्कनेक्ट कर दी। रानू के चेहरे पर भी चिंता साफ़ दिख रही थी। टॉम और बहू के लौट आने की ख़ुशी से ज़्यादा उनकी इस तरह एब्राड में नौकरी छूट जाने का दुःख था। वह उठी और प्रेयर कॉर्नर में चली गई।
हाल और किचन के बीच की छोटी-सी जगह में लगी काली स्क्रीन पर रानू के क्लिक करते ही भगवान की तस्वीर आ गई। इस सिस्टम में हर वार के हिसाब से देवता फीड हैं। सोम को शंकर, मंगल को देवी और बुध को गणेश ऑटोमेटिक आ जाते हैं। उसने स्क्रीनटच के मेन्यू में जाकर पूजा का ऑप्शन क्लिक किया तो मन्त्रों के साथ स्क्रीन पर पूजा शुरू हो गई। वह हाथ जोड़कर बैठ गई और उधर मूर्ति पर पानी, दूध, फूल चढ़ाया जा रहा है। स्क्रीन में ही दिया भी लग गया और आरती भी हो गई।
प्रेयर कॉर्नर की स्क्रीन ऑफ़ कर वह किचन रोबोट की तरफ मुड़ी और डिनर का मेन्यू फीड कर वह फिर सोफे पर आ गई। टोरा ने बोट को स्वीच ऑफ़ किया और स्कूल का लेपटॉप लेकर होमवर्क के लिए अपने कमरे में चला गया। रानू ने देखा कि ऋषभ अपने में ही खोया हुआ है। वह अपने मोबाइल में तेज़ी से स्टेटस को स्क्रोल कर रहा था। रानू ने पूछा-"परेशान हो।" ऋषभ ने गर्दन हिलाई। "नहीं तो...!" उसे लगा कि यह आवाज़ ऋषभ के गले से नहीं मोबाइल से आई है। उसने कुछ उदास होते हुए बताया कि मौसी नहीं रही। ऋषभ पर इसका कोई असर नहीं हुआ तो उसने दुबारा यही बात कही। इस बार ऋषभ ने स्क्रोल करते हुए धीमे से कहा-"ठीक है। कंडोलेंस मैसेज भेज दो।"
रानू की उंगलियाँ मैसेज टाइप करने के लिए मोबाइल की तरफ बढ़ी ही थी कि अनायास उसे लगा कि वह भी किसी रोबोट में बदल रही है। उसे अपने आप पर शर्म-सी महसूस हुई। उसे लगा कि मैसेज मिलते ही उसे कॉल कर लेना था। वह अब कांटेक्ट लिस्ट में मौसी के बेटे का फोन नम्बर सर्च करने लगी।