बोगदा पुल
बोगदा पुल
"हैलो...."
"हां भाई बोल"
"यार मेरा पर्स चोरी हो गया है ?"
"क्या !"
"हां भाई, तू जल्दी आ जा मैं बोगदा पुल पर खड़ा हूँ।"
"ठीक हैं मैं आता हूँ तू घबरा मत, मैं आता हूँ।"
यह कहानी है मेरी, मैं अमित साहू बस अभी पाँच मिनट पहले ही मेरा पर्स चोरी हुआ है। पर्स कैसे चोरी हुआ यह कहानी मैं आपको सीधे पुलिस स्टेशन में ही सुनाऊँगा। अभी मैं बोगद पुल पर अपने दोस्त रुपम पराते का इंतज़ार कर रहा हूँ। मैं नवाबो के शहर भोपाल मे रहता हूँ पर अब यह नवाबो का कम और चोर उच्चक्कों का शहर ज्यादा हैं, लीजिए रुपम आ गया। रुपम और मैं सबसे पहले जिन्सी चौराह के पास वाले थाने जो बोगदा पुल से करीब 2 किलोमीटर दूर है वहाँ गये। रुपम ने मुझे बताया कि पहले हमें रिपार्ट लिखवानी पड़ेंगी। फिल्में देखते देखते मुझे लगा था कि हवलदार रिपोर्ट लिखेगा पर कहते है न रीयल लाइफ और रियल लाइफ में फर्क होता है। हमे रिपार्ट पुलिस थाने के पास में ही एक नेट कैफे में लिखवानी पड़ी । नेट कैफे वाले को रिपार्ट तो लिखनी आती थी पर उसकी हिन्दी में कई त्रुटियाँ थी जो बार बार मुझे ठीक करवानी पड़ रही थी रिपार्ट लिखने के उसने हमसे 30 रुपए लिए और उसकी एक फ़ोटो कॉपी भी कर दी। जब पुलिस स्टेशन पहुंच तो थानेदार का पहला सवाल यही था।
"कैसे हुई चोरी ?" थानेदार ने कहा।
"सर मैं बस से जवाहर चौक से बोगदा पुल जा रहा था। न्यू मार्केट में मैंने टिकिट कटवाने के लिए अपने बैग से अपना पर्स निकाला था, मैं अपना पर्स अकसर अपने बैग की आगे वाली चैन में ररखता हू, फिर जब बोगदा पुल पर उतरा तो देखा बेग की चेन खुली हुई थी किसी ने मेरा पर्स चोरी कर लिया था।"
"क्या क्या था पर्स में ?"
"सर 200 रु, कॉलेज आई डी. वोटर आई.डी.,आधार कार्ड, बस कार्ड दो ए.टी.एम. एक एस बी आइ का था और एक यूनियन बैंक का।"
"कौन से कॉलेज से हो और क्या कर रहे हो ?"
"सर यु.आई.टी. आर.जी.पी.वी. मेकेनिकल इजिंनीयरिंग 4th इयर।" रुपम ने कहा।
तभी हवलदार ने उस पर चिल्लाया "ये कौन है ?"
"सर मेरा दोस्त है।"
"या तो तुम बात कर लो या इसे करने दो।" सॉरी सर हम दोनों ने एक साथ कहा।
"जाओ अंदर सर होंगे उनसे सील लगवा लेना।" हवलदार ने कहा।
जब हम दोनो अंदर गये तो उन सर को पूरी दास्तां एक बार फिर सुनानी पड़ी और अभी तो बस शुरुआत थी यह दास्तां बार बार सबको सुनानी थी मैं पहला ऐसा दोस्त होऊगा जो अपने दोस्त को उसके बर्थ डे के दिन पुलिस स्टेशन ले गया होऊंगा आज रुपम का बर्थ डे था पर सच्चे दोस्त तो वही होते है न जो मुसीबत के वक्त आपका साथ देते है। मैंने अपने दोनो ए.टी.एम. कस्टमर केयर को कॉल करके ब्लॉक करवा लिए थे। मुझे पता था मेरा पर्स कभी वापस नही मिलने वाला था और मेरी रिपोर्ट कुछ दिनो बाद रददी के भाव बिकने वाली थी पर मैं चाहता था उस पर्स के अंदर के जो डॉक्यूमेंट थे वह मुझे मिल जाए क्योंकि वह मेरे लिए बहुत जरुरी थे। वही बनवाने के लिए काफी ज्यादा पैसे और वक्त खर्च हो जाता। कहने के लिए तो मेरे पर्स मे सिर्फ 200 रु थे पर उन 200 रु की कीमत सिर्फ मैं जानता था कितनी मुश्किल से जोड़े थे मैंने अपने लिए नयी किताब लेने के लिए। न जाने कितने पर्स और मोबाइल रोज चोरी होते होगे जगह जगह पर सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हुए हैं पर चोर अभी भी पुलिस की गिरफत से बाहर है।
जब घर गया तो यह दास्तां मम्मी को, पापा को और बड़ी बहन को बार बार सुनानी पड़ी और हां उनके तानो का सामना भी करना पड़ा । एक दो बाते तो मैं सुना देता पर कैसे मेरी साँसे तो मेरे पर्स में अटकी थी जो अभी किसी ने चूरा ली थी। मैं आपको भी सावधान करता हूँ जब भी आप भोपाल आए तो जहांगीराबाद से जिन्सी तक अपना पर्स और मोबाईल संभाल कर रखे। जब पुलिस स्टेशन गया था तो पता चला था वहाँ पर पहले भी ऐसे बहुत से केसेश हो चुके है।
रात बीत गयी और उसी के साथ मेरे पर्स मिलने की उम्मीद भी। मैं मेरे घर की लाईट बंद करके लेटा हुआ था । जब भी हमारे साथ कुछ अच्छा या बुरा होता है तो सबसे पहले हम भगवान को याद करते हैं और इस वक्त मैं भी वही कर रहा था। मैं उन्हे कोष रहा था जिन्दगी में मैंने आज तक किसी के साथ बुरा नही किया तो आपने मेरे साथ ऐसा क्यो किया?" तभी मेरे मोबाईल पर एक नये नम्बर से कॉल आया जब मैंने वह कॉल उठाया तो वह एक आदमी का कॉल था। वह हकला हकला कर बात कर रहा था। मुझे बस इतना समझ में आया कि उसे मेरा पर्श मिल गया है और उसे लेने के लिए अपने घर बूलवा रहा था। उसने जो पता बताया था वह मेरे समझ में नही आ रहा था बस यह समझ में आया कि वह बोगदा पुल के पास कही रहता है। मुझे तो लग रहा था कि दाल मे जरुर कुछ काला है उसने घर पर ही क्यों बुलाया इसलिए मैंने रुपम को भी बुलवा लिया था।
जब हम दोना बोगदा पुल पहुंच तो रुपम ने कहा अब फिर से कॉल करके पूछ कि कहा आना है। जब मैंने फिर से कॉल किया तो उसने कहा बोगदा पुल के पास एक पेट्रोल पंप है वहाँ पर पास में ही देशी शराब कि दुकान है वहाँ पर किसी से भी पूछ लेना सोनू शुक्ला का घर कहाँ हैं। रुपम और मैं पूछते पूछते कैसे भी करके उसके घर पहुँच गये। जब हम वहाँ गये तो देखा दरवाजे पर एक आदमी बैठा था जिसकी उम्र करीब 30 वर्ष होगी। मैंने उससे पूछा कि
"यही सोनू शुक्ला का घर है क्या ?" तो उसने मेरी तरफ उँगली करते हुए कहा-
"आप अमित होना ?"
"हां" मैंने कहा।
उसने अपनी मम्मी को आवाज देते हुए कहा "अरे मम्मी.... वो पर्स ला देना अमित आ गया हैं अपना पर्स लेने।" उसने हकलाते हुए कहा। 2 मिनटे बाद उसकी मम्मी पर्स लेकर आ गयी। उसकी मम्मी ने बताया सोनू विकलांग है। उसका दाया हाथ काम नही करता और थोड़ा सा हकला हकला कर बात करता है। वह रोज शाम को मोहल्ले में घुमने निकलता है। कभी कभी आस पास की नीचे पड़ी चीजें उठा कर ले आता है। उसे ही मोहल्ले में एक पेड़ के पास आपका पर्स पड़ा मिला। आपका आधार कॉर्ड, वोटर आई डी सब बिरखरे पड़े थे। उसने ढूंढ ढूंढ़कर जमा किए और फिर मैंने कहा जिसका पर्स है उसको वापस कर देना चाहिए वह बहुत परेशान हो रहा होगा।
मुझे मेरे पैसे तो नही मिले थे पर सारे डॉक्यूमेंट जरूर मिल गये थे। सोनू से मिलने से पहले मुझे लगता था इंसानियत खत्म हो चुकी हैं पर ऐसा नही है इंसानियत आज भी जिन्दा है जिसे सोनू जैसे नेक लोगों ने जिन्दा रखा है। जहां एक और जो इंसान पूरी तरह तंदुरुरस्त है तभी चोरी का काम कर रहे हैं तो वही दूसरी ओर सोनू जैसे लोग हैं जो विकलांग होकर भी भलाई का काम कर रहे हैं। अगर दुनिया मे बुराई है तो अच्छाई भी है इसका एक जीता जागता उदाहरण आज हम लोगों के सामने हैं।