स्टार्टअप

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"यार भाई बात समझ, यू बेफालतू में वक्त मत गँवा।"

"यार भाई तू समझ, यह सपना था मेरा।"

हाँ भाई मैं समझ रहा हूँ पर मेरी बात मान, पहले कोई सी "नौकरी कर ले, जब पैसे आ जाएगें तब स्टार्ट कर लेना तेरा स्टार्टअप"

"नहीं भाई यदि नौकरी कर ली तो जो करना चाहता हूँ वो नहीं कर पाउंगा, ज़िन्दगी भर बस नौकर बनकर रह जाऊँगा।"

"यार देख, जब तक तेरे पास सरकारी नौकरी नहीं होंगी कोई भी बाप तुझे अपनी लड़की नहीं देगा, सोच ले।"

"हाँ सोच लिया है भाई, मेरे लिए शादी से ज्यादा ज़रुरी मेरे सपने है।"

"देख 6 महीने पहले भी तुने शुरुआत की थी, क्या हुआ तेरे स्टार्टअप का? फेल ही हुआ ना।"

"हां भाई हुआ पर हार के बाद ही तो जीत आती है ना और अब तो एक्सपीरियंस भी हो गया है जो ग़लती पहले की थी वह अब नहीं करूँगा।"

"यार सोच ले अच्छे से, यदि अब फेल हुआ तो जिन्दगी भर पछतावा होगा।"

"भाई यदि अभी शुरू नहीं किया तो जिंदगी भर यह सोच कर पछतावा होगा कि वक़्त था पर बस कोशिश नहीं की।"

"सोच ले तेरे घर पर एक तेरी माँ है जिसे बहू की जरुरत होगी, एक पिता है जिसे आराम की जरुरत है होगी और एक बहन भी है जिसकी शादी करानी है तुझे।"

"सोच लिया है भाई, कुछ ख़्वाब हमारे इसलिए भी टूट जाते है क्योंकि हमारे अपने बीच में आ जाते हैं पर अब नहीं।"

"ठीक है जैसे तेरी मर्ज़ी, यदि मेरी कोई जरुरत पड़े तो बता देना, मैं हमेशा तेरे साथ हूँ।"

नमस्कार, यह कहानी है मेरी मैं अमित कसुम केवट और यह वार्तालाप जो आप लोग सून रहें थे यह मैं अपने रुममेट विकास यादव से कर रहा था। हम सभी लोग अपने छोटे- छोटे गाँव से, अपने बड़े-बड़े सपने सच करने शहर आते है और मैं भी भोपाल शहर अपने सपनों को सच करने आया था। मैं एक मीडिल क्लॉस फैमली से बिलॉन्ग करता हूँ। मेरे पिता जी सरकारी नौकरी में है और माता जी गृहिणी है और मेरे घर में मुझसे छोटी मेरी एक बहन भी हैं श्रद्धा, जो उस वक्त बारहवीं क्लॉस में थी। जब मैने इंजीनियरिंग की दुनिया में कदम रखा था मेरा परिवार उमरिया गाँव में रहता था। मैंने भोपाल के टी.आई.टी. कॉलेज में अपना एडमिशन लिया था और मेरी शाखा थी मेकेनिकल। जब रैगिंग हुई तो सबसे पहला सवाल यही था की मेकेनिकल इंजीनियरिंग क्यो ली? इसका जवाब तो खुद मुझे भी नहीं पता था। सच तो यह था जो ब्रांच मुझे मिली वो मैंने ले ली पर फिर भी सिनीयर्स को कुछ न कुछ तो जवाब देना ही पड़ता है न, तो कह दिया आमिर खान फेवरेट हीरो है उसी की थ्री इडियट्स देखकर ली थी।

3 साल हो गये थे इंजीनियरिंग करते-करते। इंजीनियरिंग ने इंजीनियरिंग तो नहीं सिखाई पर जिन्दगी जीने का सलीका ज़रुर सीखा दिया था। कॉलेज में ही दो जिगरी दोस्त बन गये थे। विकास यादव और विजय कुमार। विजय का घर भोपाल में अयोध्या नगर के पास था। विकास और मैं रुम से पिपलानी में रहते थे। हम तीनों की दोस्ती बहुत गहरी हो गयी थी। कभी-कभी विजय हमारे साथ ही हमारे रुम पर रात में रुक जाया करता था और विजय के घर भी हमारा आना जाना लगा रहता था।

इंजीनियरिंग खत्म होने में अब बस एक साल बचा हुआ था पर अभी तक मुझे पता नहीं चला था कि मुझे क्या करना है? विकास ने तो बैंक कि कोचिंग लगा ली थी और विजय ने गेट की। अब बचा मैं, मैं तो कन्फ्यूज था क्या करूँ? बस खाना खाने और बनाने के सिवा मुझे कुछ नहीं आता था। गाँव में ग्यारवीं क्लॉस से ही गाँव के भण्डारे का खाना मैं भी बनाया करता था। सारे गाँव में मेरे हाथ का खाना फेमस था। उस वक्त मेरे दिमाग में बस एक ख्याल था कि मैं नौकरी नहीं करना चाहता था मैं खुद का कुछ स्टार्ट करना चाहता था पर क्या? यह अभी तक मुझे भी नहीं पता चला था।

उस दिन मैं और विकास, विजय के घर में बैठे हुए थे। तभी विजय की मम्मी हमारे लिए दाल बाटी बनाकर ले आई पता नहीं क्या जादू था उनके हाथ में, रात को रूम पहुँचकर भी उसका स्वाद मेरी जुनाब पर चड़ा हुआ था। फिर अगले ही दिन जब हम घूमने निकले तो जे.के. रोड पर ठेलों पर कई दाल बाटी की दुकान लगी हुई थी जहाँ पर लोग अपनी बाईक, कार और पैदल चलने वाले रुक कर दाल बाटी खा रहे थे। मेरा मन भी किया दाल बाटी खाने का पर विजय ने कहा "भाई कल ही तो खिलाई थी मम्मी ने, क्यो बेफालतू मे पैसे खर्च कर रहा है।" पर मैं नहीं माना और मैं बैठे गया खाने। दाल बाटी 20 ₹ प्लेट थी पर उसका स्वाद भी 20 ₹ की तरह ही था। उसमें वह बात नहीं थी जो विजय की मम्मी की दाल बाटी में था। एक हफ्ते बाद भी विजय की मम्मी की दाल बाटी का स्वाद मेरी जुबान पर था। मैं दाल बाटी खाने के लिए तरस गया था पर पूरे भोपाल में कहीं भी मुझे दाल बाटी नहीं मिली और मिली भी तो उसमे वह स्वाद नहीं था। तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया और मैंने सोच लिया कि मुझे जिन्दगी में क्या करना हैं। मैं खुद का स्टार्टअप खोलना चाहता था, दाल बाटी का स्टार्टअप। जब मैंने अपना प्लान विजय और विकास को बताया तो विजय ने कहा देख भाई प्लान तो अच्छा है पर जी जान लगानी पड़ेगी और मेहनत भी बहुत करनी पड़ेगी। मैं सब मुश्किलों से लड़ने के लिए तैयार था पर विकास को अभी भी मेरा प्लान समझ में नहीं आया था। विकास ने कहा "भाई क्या तू कोई सा रेस्टोरेंट खोलने वाला है पर इतना पैसा कहा है तेरे पास था?" फिर मैंने उसे समझाया कि "अभी हम सबसे पहले ओर्डर लेंगे और घर-घर जाकर फ्री होम डिलीवरी देंगे।"

विकास ने कहा "उसके बाद?"

"यदि चल गया तो फिर उसके बाद खुद का रेस्टोरंट खोलेंगे।"

"यदि नहीं चला तो?" विकास ने कहा।

"भाई तू नेगेटिव क्यो सोच रहा है? हार या जीत का फैसला तो तब होगा न जब हम मैदान में उतरेंगे। यू बैठे रहने से ही अंदाजा थोड़ी लगा सकते है हम सफल या असफल।" विजय ने कहा

एक महीने बाद नव वर्ष था और मैंने सोच लिया कि नव वर्ष के दिन से अपने स्टार्टअप की शुरुआत करूँगा पर उससे पहले स्टार्टअप का नाम सोचना जरूरी था। हम तीनों ने बहुत सोचा कि क्या नाम रखे फिर विजय ने कहा कि "मालवा मे दाल बाटी बहुत फेमस है वहां पर जब भी किसी के घर कोई मेहमान आता है तो वही खिलाया जाता है तो फिर हमने मालवा की दाल बाटी ही नाम निश्चित किया। मैंने विजय की मम्मी से दाल बाटी बनाना सीख लिया था। मैंने सोशल मीडिया का फायदा उठाया और फेसबुक इंस्टाग्राम पर पेज बनाए और एडवांस बुकिंग करना शुरू कर दी। कुछ बुकिंग दोस्तों ने की, कुछ विजय ने करवाई और कुछ फेसबुक से हुई कुल 16 ऑर्डर मिले थे मुझे नव वर्ष के लिए। कम थे पर आरंभ के लिए यह मेरे लिए बहुत थे। ऑर्डर तो मिल गये पर असली परीक्षा तो अब शुरू हुई थी। ऑर्डर के लिए सामान कहाँ से लाता? पापा महीने के खर्च के लिए जितने पैसे भेजते थे वह तो मैं पहले ही खर्च कर चुका था। विजय और विकास से भी उधार नहीं ले सकता था क्योंकि पहले से ही बहुत सारी उधारी थी। और फिर वह दिन भी आ गया जब पापा से मैंने पहला झूठ बोला। मैंने पापा सें कहा "कुछ किताबें खरीदना है और कॉलेज में भी पैसे लग रहे है।" पापा ने दो दिन मे इतांजाम कर के 3000 ₹ भेज दिए। ए.टी.एम. में से पैसे निकालते वक्त मैंने खुद से एक वादा किया की उन पैसों में का एक पैसा भी मैं अपने ऊपर खर्च नहीं करूँगा, सारा का सारा स्टार्टअप पर खर्च करूँगा। मैंने उन पैसों से आटा, दाल, पापड़, सलाद का सामान, और पैकिंग का सामान ख़रीदा। पर एक सामान ऐसा था जिसे ढूंढने के लिए मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ी। वह सामान था गाय के कण्डे, बाटी को सेकने के लिए कण्डे कि जरुरत तो पड़ती ही है। पूरे भोपाल मे मुझे कण्डे कहीं नहीं मिल रहें थे पर कहते है ना ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते है तो फिर यह कण्डे क्या चीज थे और आखिरकार मुझे कण्डे भी मिल जाते है।

सुबह सात बजे से मैंने काम करना शुरू किया। बाटी मुझे विजय के घर पर ही बनानी पड़ी क्योंकि मेरे रूम पर सब सामान की व्यवस्था नहीं थी जहाँ पर में कण्डो पर बाटी सेक सकता। विकास, विजय और विजय की मम्मी ने भी मेरी बहुत मदद की थी।

वह तारीख आ गयी थी जिसका मैं इंतजार कर रहा था। आज 1 तारिख थी और मुझे ऑर्डर डिलीवर करने थे। मैंने 10 बजे तक पैकिंग का काम खत्म कर लिया था और अब वक्त था डिलीवरी का। मेरे पास बाईक नहीं थी पर विकास ने अपने एक दोस्त से बात करके मेरे लिए बाईक का इंतज़ाम करवा दिया था पर वह बाईक मुझे शाम 6 बजे तक वापस करनी थी इसलिए मुझे जल्दी से जल्दी सारी डिलवरी शाम 5 बजे तक खत्म करनी थी। डिलीवरी देते वक्त मुझे बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उस दिन एक तारीख थी बहुत सारे लोग नव वर्ष के कारण घूमने गये थे और कुछ लोगो के तो फोन ही नहीं लग रहे थे, शायद जो फोन नहीं लगे थे वह मेरे दोस्तों के थे जिन्होनें मेरा मजाक बनाने के लिए ऑर्डर दिए थे। कुछ ऑर्डर के एड्रेस तो, बहुत दूर-दूर थे एक भोपाल का शुरुआत का कोना था तो दूसरा अन्त का।

शाम 4 बजे तक मैंने 10 ऑर्डर डिलीवर कर दिए थे। 6 ऑर्डर अभी भी बचे हुए थे पर अब मैं हार मान चुका था क्योंकि जब मैं एक डिलीवरी देने गया था तो जिस बैग में दाल बाटी रखी थी वह बैग गिर गया था जिसमे से दो दाल बाटी के पैकट खराब हो गये थे फिर मैंने सोचा अब मुझे घर ही चले जाना चाहिए और जो ऑर्डर बचे है उनके पैसे वापस कर दूँगा। मैं रुम पर गया और जाकर सो गया। विकास उस वक्त कोचिंग गया था। मेरी 6 बजे नींद खुली, वो भी इसलिए क्योंकि मेरा मोबाईल बार-बार बज रहा था। जिसकी बाईक मेरे पास थी उसके बार-बार कॉल आ रहे थे। मैं उसी वक़्त उठा और उसकी बाईक वापस करने चला गया। जब रुम वापस आया तो देखा रुम पर विकास और विजय दोनो बैठे हुए थे दोनो ने एक साथ उत्साहित होकर पूछा

"बता कैसा रहा तेरा मालवा की दाल बाटी का पहला दिन?"

फिर मैंने उन दोनो को पूरा किस्सा सुनाया कि क्या क्या हुआ मेरे साथ।

विकास ने कहा "तू पागल तो नहीं है? इतनी मेहनत की, थोड़ी और नहीं कर सकता था। आज पहला ही तो दिन था और मुश्किल होना तो जाहिर सी बात है बिना मेहनत के सफलता थोड़ी मिलती है। जीत देखने का हक सिर्फ़ उसे है जिसने कभी हार का सामना किया हो। रौशनी उन्हीं के जिन्दगी में आती हैं जो कभी अंधेरो से घिरे होगें।"

"चल उठ और बता कौन-कौन से ऑर्डर देना बाकी है?" विजय ने कहा

मैंने विकास और विजय को मना किया पर वह दोनो नहीं माने फिर विकास ने मुझसे कहा "सोच ले बेटा, तुझे जिन्दगी भर नौकरी करनी है या नौकरी देनी है आज इसका फैसला तुझे करना है।"

मैं उसी वक्त उठा और विकास और विजय के साथ जो ऑर्डर बचे हुए थे उन्हें डिलिवर करने निकल गया। उस वक्त हम तीनों के पास बाईक नहीं थी इस वजह से बस से सफर कर के ही आर्डर की डिलीवरी देनी पड़ी। रात के 11 बजे हम तीनों रुम आए। हम तीनों बहुत थक चुके थे विकास और विजय तो जाते से ही बैड पर सो गये थे पर मैं नहीं सोया था मुझे नींद ही नहीं आ रही थी। उस दिन पहली बार दिल को बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि उस दिन मैंने वह किया था जो कि मैं करना चाहता था न कि वो जो ये दुनिया और दुनिया के लोग मुझसे करवा रहे थे। उस दिन भले ही मैंने कोई प्रोफिट नहीं कमाया पर मैं बहुत खुश था कि मैंने अपना स्टार्टअप मालवा की दाल बाटी शुरू कर दिया है। उस दिन के बाद से मैंने शनिवार और रविवार को ऑर्डर लेने शुरू कर दिए हफ्ते में तीन चार ऑर्डर तो आ ही जाते थे पर तीन चार ऑर्डर के लिए भी उतनी ही मेहनत करनी पड़ती थी जितनी कि 10 आर्डर के लिए करनी पड़ती थी ।

2 महीने बीत गये थे सब कुछ ठीक चल रहा था। धीरे-धीरे प्रॉफिट भी आना शुरु हो गया था पर तभी घर से फोन आ गया और बुलावा आ गया। पापा की अचानक तबियत खराब हो गयी थी। मैंने अपने घर में अपनी छोटी बहन के अलावा किसी को नहीं बताया था कि मैंने अपना स्टार्टअप खोला है यदि बता भी देता तो कौन मेरे सपनों पर भरोसा करता। हमारे समाज ने ऐसा वातावरण बना दिया हैं कि सरकारी नौकरी ही सब कुछ है वरना कुछ भी नहीं ।

मैं एक महीने बाद भोपाल वापस आया पर जब वापस आया तो मेरे 7 सेमेस्टर की परीक्षा शुरू होने वाली थी इसलिए मैं ऑर्डर नहीं ले पा रहा था मेरे पास जितने भी फोन आये सब को मैंने मना कर दिया। देखते ही देखते परीक्षा भी हो गयी और फिर मैं वापस गाँव चले गया और फिर जब 8 सेमेस्टर शुरु हुआ तो वापस आ गया और फिर दिन वक़्त की रफ्तार के साथ गुजरने लग गये। सब दोस्त लोग कोई न कोई सी कोचिंग करने लगे थे पर बस मैं खाली बैठा हुआ था क्योंकि मैं नौकरी नहीं करना चाहता था पर मैं क्या करता? मेरा तो स्टार्टअप भी अब बंद हो चुका था। मेरे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करूँ ऊपर से जब भी घर वालो से बात करता तो मम्मी यही कहती "बेटा जल्दी से इंजीनियरिंग पूरी कर ले और जॉब पर लग जा कब तक तेरे पापा सारी जिम्मेदारी उठाएगें?" 2 महीने बाद मेरी इंजनियरिंग कम्प्लीट होने वाली थी टेन्सन के कारण नींद भी नहीं आती थी। विकास और विजय का तो यही कहना था भाई कोई सी कोचिंग जोइन कर ले और भूल जा जो भी हुआ तेरे साथ और मैंने भी सोचा शायद यह दोनो ठीक कह रहे है फिर मैंने एम.पी.पी.एस.सी. की एम.पी. नगर में कोचिंग जोइन कर ली।

मैं एम.पी. नगर बस से जाता था। 1 महिना हो गया था कोचिंग जाते-जाते। मेरी कोचिंग रोज 9 बजे छुट्टी थी और रोज बस में एक अंकल दिखते थे। हाथ में एक काला बैग पकड़े हुए, पसीने से लट-पत शर्ट पेंट, चेहरे पर हमेशा उदासी पता नहीं क्यो जब भी उन्हे देखता था तो लगता था क्या यही जिन्दगी है? मैं उनसे कई दिनो से बात करना चाहता था पर नहीं कर पा रहा था पर उस दिन रहा नहीं गया और फिर मैंने उनसे बात कर ही ली

"अंकल आप क्या करते है?"

"बेटा प्राइवेट जॉब करता हूँ।"

"कितनी पेमेंट हैं आपकी?"

"बेटा 15000 हजार"

"अच्छा; क्या आप खुश हो अपनी जिन्दगी से?"

"तुम्हें क्या लगता है मुझे देखकर?"

"लगता तो नहीं है कि आप खुश होंगे?"

"बेटा एक बात बोलू अभी तुम्हारे पास बहुत वक्त है, वही करना जो दिल बोले। ये दुनिया बहुत ज़ालिम है न खुद कुछ नया करती हैं न दूसरा को करने देती है। जब भी कोई इंसान कुछ नया करना चाहे तो बस उसे पागल पागल और ताने देने लगती है और जब वह इंसान उस काम में सफल हो जाता है तो अपना हक जताने आ जाती है।"

अंकल जी की बातें दिल को लग गयी पर फिर भी दिल नहीं माना पर उस दिन उन दो फोन कॉल ने मुझे एक नयी प्रेरणा दी और मेरी जिंदगी को एक नया मोड़ दिया। मैंने सोच लिया मैं अपनी ख़्वाहिशों का गला घोट सकता हूँ पर अपने ख्वाबों का नहीं।

उस दिन मैं अपने रुम पर बैठा हुआ था। तभी मुझे एक नये नम्बर से फोन आया वह किसी आंटी का कॉल था उन्होंने मुझे 5 ऑर्डर दिए पर जब मैंने उनसे कहा कि "मैंने अपना मालवा की दाल बाटी का स्टार्टअप बंद कर दिया है" तो उन्हें बहुत बुरा लगा उन्होंने कहा "बेटा तुमने ऐसा क्यो किया? पता है तुम्हारी दाल बाटी का स्वाद बहुत अच्छा था। मैं जब भी किसी प्रोग्राम में जाती हूँ उसी की तारीफ करती हूँ। उसका स्वाद मैं अभी तक नहीं भूल पाई। मैं तो अपने बेटे को भी यही सलाह देती रहती हूँ बेटा अपना खुद का कुछ करो, नौकरी करने लायक नहीं बल्कि देने लायक बनो।" आंटी जी से बात करने के बाद मुझे एक घण्टे बाद एक और नये नम्बर से फोन आया। वह एक लड़के का फ़ोन था और उसे भी दाल बाटी का ऑर्डर देना था पर मैंने उसे भी मना कर दिया। मुझे उस रात नींद नहीं आयी। मैं सोच में पड़ गया था कि मुझे जिन्दगी में क्या करना था और मैं क्या कर रहा हूँ। मैंने विकास और विजय को इस बारे में कुछ नहीं बताया पर अगले ही दिन मैंने विकास से कहा "मुझे मेरा स्टार्टअप फिर सें शुरू करना है इसी बात पर आज सुबह मेरा विकास से झगड़ा हो गया था पर मैं अब नहीं रुकने वाला हूँ। मैंने सोशल मीडिया पर अपडेट दे दिया है मालवा की दाल बाटी इज़ बैक और 10 आर्डर तो मिल भी चुके है। इस शनिवार और रविवार के लिए मुझे 30 आर्डर मिल गये है।" वैसे विकास और विजय मुझसे बहुत नाराज़ है पर आखिर में वह भी मेरी मदद करने आ ही जाते है कैसे न आते आखिर दोस्त है मेरे।

1 महीने बाद

एक एन.जी.ओ. था एन.एस.बी.एम. दिशांजली। उसका एक प्रोग्राम था उसके लिए मुझे 80 ऑर्डर मिले थे और वही से मेरे स्टार्टअप ने रफ्तार पकड़ ली। वहां पर कई लोग आये थे जिनको मेरी मालवा की दाल बाटी बहुत पसंद आयी थी उन्होंने फेसबुक पर जाकर मेरे पेज पर रेटिंग भी दी थी और मेरे पेज को शेयर करना शुरू कर दिया था।

6 महीने बाद

जो सपना मैंने देखा था वह अब सच हो गया था मालवा की दाल बाटी अब एक रेस्टोरेंट में तब्दील हो चुका था और काफी अच्छा चलने लगा था उसी के साथ मैने इंजीनियरिंग रसोई की भी शुरुआत कर दी थी जिसमें 80₹ प्लेट में भर पेट खाना मिलता था। पापा को मुझ पर बहुत अभिमान था और मम्मी भी मुझसे बहुत खुश थी। मेरा यह सपना, सपना ही रहता यदि उस दिन विजय की मम्मी ने और विकास ने नये नम्बर से फोन करके आर्डर नहीं दिये होते। मैं उसी वक़्त उनकी आवाज़ पहचान गया था पर मैंने उन्हें नहीं बताया था। मैं समझ गया था मेरे दोस्त मुझे हारता हुआ नहीं देख सकते है।

"दोस्तों सपने हर कोई देखता है पर उन सपनों को हकीक़त में बदलना ही असली सपना होता है।"


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