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बुनावट

बुनावट

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पिछले कुछ दिनों से निम्मी के रिश्ते की बात चल रही थी। एक से एक लड़के और खानदान के रिश्ते देखे जा रहे थे। कुछ लड़के मिलने भी आए थे। सब कुछ ठीक रहता फिर भी ना जाने क्यों दादाजी सब मना कर देते। निम्मी उन्हें बहुत मानती थी।

आज जो लड़का आया था। वो एकदम स्टाइलिश हीरो की तरह और एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर था, उससे बातचीत हुई और दादाजी बोले शाम को बताता हूँ।

उसी दिन शाम को फिर एक सरकारी कंपनी में बैंक कर्मी लड़का भी आया। जिसकी थोड़ी बहुत ज़मीन भी थी।

शाम को दादाजी ने उस लड़के को जो बैंक कर्मी था, निम्मी के लिए पसंद कर लिया।

निम्मी की माँ को ये जमा नहीं, वो बोली आपने अच्छा पढ़ा लिखा लड़का छोड़कर एक साधारण नौकरी और ज़मीन जायदाद वाले वर को क्यों चुना, मुझे कारण बताइए। इस पर दादाजी बोले बताता हूँ, जाओ पहले निम्मी की दादी की वो सहेजी साड़ी ले आओ, जो वो निम्मी को देना चाहती थी, और जो कल तुम नये कपड़े और वस्त्र लाई हो वो भी लाना।

इसके बाद उन्होंने कहा इनको दोनों को फाड़ने की कोशिश करों। लाख कोशिश के बाद भी निम्मी की दादी वाली साड़ी यथावत रही और कल ही नया आया परिधान फट गया।

देखो बहू वो चमचमाता लड़का ये नया परिधान था, जो बस देखने में ही आकर्षक था, पर उसकी बुनाई कमजोर थी। 

वो सादा लड़का इस साड़ी की तरह, जिसके संस्कारों की बुनावट बहुत मजबूत और टिकाऊ है।

ये सब मुझे उन दोनों से बातचीत करके समझ आ गया। बाकी फैसला मैं तुम दोनों पर छोड़ता हूँ।

अनुभव के चश्मे से देखकर आपने ये फैसला लिया, मैं आपसे क्षमा चाहती हूँ, मैं समझ गयी आपकी बात को। निम्मी की माँ बोली।


  



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