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shuddhatam jain

Inspirational

4.9  

shuddhatam jain

Inspirational

धरम करत संसार सुख

धरम करत संसार सुख

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एक छोटी बच्ची थी। उसका नाम राधिका था। वह अत्यन्त ही निर्धन परिवार में रहती थी, अतः उसके माता-पिता मेहनत-मजदूरी करके उसे किसी तरह स्कूल पढ़ने भेजते थे। राधिका को शुरू से ही नृत्य सीखने की अभिलाषा थी, किन्तु निर्धनता के कारण उसके माता-पिता उसकी इस इच्छा को पूरा करने मं असमर्थ थे। राधिका की कक्षा के अनेक विद्यार्थी नृत्य, संगीत, चित्रकला आदि अनेक प्रकार की क्रियेटीवीटी की कक्ष़ा में जाते थे। राधिका यह सब देखती तो स्वयं को बहुत अभागी समझकर दुखी होती थी।

धीरे-धीरे वह उदास रहने लगी। उसकी उदासी देखकर एक दिन उसकी मम्मी ने उससे पूछा तो राधिका ने अपनी नृत्य-रुचि के बारे में बताया और कहा कि कक्षा के दूसरे विद्यार्थी एक्स्ट्रा क्लास में जाकर नृत्य, संगीत आदि सीखते हैं। इसके लिए मैं क्या करूं? तब उसकी मां ने उसे कहा- ‘बेटी! तुम तो प्रतिदिन जिनेन्द्र मन्दिर जाया करो, इसी से सांसारिक और पारलौकिक सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

राधिका ने कहा- मां! मन्दिर के भगवान तो पाषाण के हैं, वे मुझे नृत्य कैसे सिखा सकते हैं? मन्दिर जाने से मुझे क्या फायदा होगा? मां ने उसे बहुत शान्त्वना देकर कहा- ‘बेटी! चिन्ता मत करो। तुम तो सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दो। राधिका ने मां की बात मानकर प्रतिदिन मंदिर जाना प्रारम्भ कर दिया, लेकिन उसके मन में सदैव नृत्य न सीखने का दुख बना रहता था।

मंदिर जाकर राधिका खूब मन लगाकर जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करती। ऐसा क्रम कई दिन चलता रहा। मंदिर के चबूतरे पर कुछ लोग पक्षियों के लिए चुग्गा डालते थे, जिससे वहां खूब सारे कबूतर, चिडि़या आदि पक्षी आते थे। राधिका जब दर्शन कर मन्दिर से बाहर आती तो पक्षियों को देखने में उसका बहुत मन लगता। वह बहुत समय तक वहीं बैठी रहती। वह भी यथाशक्ति कुछ चुग्गा ले जाने लगी।

उन पक्षियों में एक मयूर भी आता था। वह बहुत सुन्दर पंखों वाला था। राधिका उसे अपने हाथ से अनाज के दाने खिलाती थी। मयूर भी धीरे-धीरे राधिका से हिल-मिल गया था। अक्सर वह मयूर अपने सुंदर पंखों को गोलाकार फैलाकर नृत्य की मुद्रा में बहुत समय तक नृत्य करता था, जिसे देखकर राधिका बहुत प्रसन्न होती और काफी समय तक खो-सी जाती थी।

जैसा कि कहा जाता है- जिधर रुचि है, उस ओर थोड़े से प्रयास से भी सफलता मिल जाती है। अतः राधिका ने अपने रुचि के अनुसार उस मयूर के नृत्य को देखकर नृत्य करना सीख लिया। वह प्रतिदिन प्रातःकाल मयूर का नृत्य देखती और सांयकाल उसका अभ्यास करती। धीरे-धीरे वह नृत्यकला में निपुण हो गई।

एक बार उसके विद्यालय में नृत्यकला की प्रतियोगिता हुई, उसमें कई छात्रों ने अपने नाम लिखवाये। जब राधिका ने भी अपना नाम लिखने को कहा तो सभी छात्र खूब हॅंसने लगे और उसे चिढ़ाने लगे कि तुमने कहां से नृत्य सीख लिया? राधिका उस समय कुछ न बोली।

वह दिन भी आया, जब प्रतियोगिता होनी थी। सभी का नृत्य एक से बढ़कर एक रहा। अन्त में जब राधिका का क्रम आया तो उसने भी नृत्य की सुन्दर प्रस्तुति दी। उसके नृत्य को देखकर सभी चकित रह गये। वास्तव में उसका नृत्य अन्य छात्रों से भी अच्छा रहा, अन्त में प्रथम पुरस्कार भी उसे ही प्राप्त हुआ। जब उसके उद्बोधन का समय आया तो वह मजाक के प्रत्युत्तर में बोली- ‘‘जब एकलव्य मिट्टी की मूर्ति से धनुर्विद्या सीख सकता है तो मैं सजीव मयूर से नृत्य क्यों नहीं सीख सकती ? सच है जिसने जिनेन्द्र देव का साथ नही छोड़ा, उसके सभी कार्य सिद्ध हुए हैं।’’


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