मां! तुम हो तो जग है
मां! तुम हो तो जग है
जैसे नदी अपने उद्गम से
सागर तक
अपनी धुन में बहती हो
जाने कितने जन को जीवन देती हो,
जैसे पूरब से निकली धूप
सभी दिशाओं तक जाती हो
पेड़,पौधों से गले मिलती हो
खेतों में फसलें रचती हो,
जैसे चंचल वायु
धरती से गगन तक
अबाध गति से चलती हो
हर प्राणी में प्राण प्रतिष्ठा करती हो,
ऐसे तुम जीवन रचती हो
रूखे-सूखे निवालों में
लाड़, दुलार,ममता भरती हो,
करुणा का सागर झरती हो,
तपस्विनी हो मां!
तुम संपूर्ण जीवन दायिनी हो,
मां !तुम हो,तो जग है,हम हैं |