पानी..!
पानी..!
बादलों से पानी गिर रहा था
पर में उसे पी ना सका
जिंदगी बे इम्तेहाँ चाहता था
पर उस के बिना जी ना सका
दो हाथों को आँचल बनाया
पर आँचल में रुक ना सका
बांध बनाकर रोकना चाहा
पर उसके सामने झुक ना सका
जिनको ना थीं कमी पानी कीं,
वह अपने तरणताल भर रहे थें,
जिनको व्याकुलता थीं पानी कीं
वह किसान सुखें में मर रहे थे।
छपरे, तालाब, नदीयों में बहकर,
तुम सागरों में विलीन हो गए,
उसके पास तो पानी का भांडार है,
प्यासे पानी के बिना मर गये।
बादलोंसे पानी गिर रहा था!
पर में उसे पी ना सका.
जिंदगी बे इम्तेहाँ चाहता था!
पर उस के बिना जी ना सका.