नन्ही परी
नन्ही परी


एक बच्चे का जन्म किसी भी स्त्री के लिए एक वरदान से कम नहीं। इससे उसकी नारी जन्म सफल होती है। अपने अंदर एक जीवन को पालना, उसे इस धरती वे लाना एक सौभाग्य है। इससे बड़ा शायद और कुछ नहीं। हिन्दू धर्म मे नारी को बहुत ऊंचे पद पर रखा जाता है। क्योंकि वही सृष्टि संचार की आदि मानी जाती है।
ये सच है कि कुछ स्त्रियों को ये वरदान प्राप्त नहीं होता, वो इस सौभाग्य का भोग नहीं कर पाते। परंतु कुछ ऐसे भी हैं जिनको ये सौभग्य लाभ होकर भी कई मजबूरियों की वजह से इसको नकार देते हैं। ऐसे अपराध का नाम है गर्भपात या 'आबोर्शन'।
बहुत सी वजह देखी जाती हैं, कभी कभार स्वास्थ्य अवस्था की वजह से तो कभी कोई और मेडिकल कारणों की वजह से। परंतु जब कारण अति हीन हो तो ये माह पाप बन जाता है। और उस स्त्री को इसका बोझ मरते दम तक उठाना पड़ता है।
तो यहां आज हम किस्सा सुनेंगे ऐसे ही एक माँ की। ये कहानी है शिवानी की, शिवानी अपनी ससुराल में एक लोती बहु है। ज़ाहिर सी बात है वंश वृद्धि का पूरा भर उसपर ही होगा। विवाह के १ साल बाद शिवानी गर्भवती हुई। शारीरिक कमज़ोरियों की वजह से उसको अस्त्रोपचार से एक बेटी हुई।
आज कल बच्चे के जन्म के लिए कुत्रिम माध्यम यानी कि अस्त्रोपचार या सिज़ेरियन का विकल्प बहुत ही आम और साधारण सी बात है। कुछ लोग तो योजनाबद्घ अस्त्रोपचार भी चुनते हैं। वैसे तो जनसंख्या को काबू में लाने के लिए सरकार ने एक या दो संतानों में ही अपना परिवार बनाने की योजना का एलान किया है। और अस्त्रोपचार से एक स्त्री केवल दो संतान ही जन्म दे सकती है। उसके बाद गर्भावस्था में ख़तरे की आशंका रहती है। जो माँ और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक मन जाता है।
तो हुआ यूं के बेटी होने का दुख तो नहीं था परंतु दूसरी संतान बेटा ही हो इसकी चिंता बढगयी। परिवार के लोगों की उम्मीदें बहुत थी, की अगली बार बेटा होजाये तो वंश आगे बढ़ जाएगा। शिवानी की बेटी अब ३साल की होगयी थी। परिवार वालों ने दूसरी संतान के लिए उसे कहा। 6-7महीनों बाद वो फिर से गर्भवती हुई। लेकिन पहली बार किंतरः इस बार उत्साह के बदले उसके मन मे घबराहट थी। पता नहीं क्यों पर उसे कुछ ठीक से नही लग रहा था।
हमारे समाज मे पुरातन काल की कुछ बातों का कोई प्रमाण तो उपलब्ध नहीं ही है लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनका सच होजाना किसी संयोग से कम नहीं। जैसे गर्भावस्था में कुछ लक्ष्णों को देख कर ये कहा जा सकता है कि वर्भ में लड़की है या लड़का। हालांकि ये हमेशा सही साबित नही होता। शिवानी के पहले गर्भावस्था के लक्षण अब से कुछ मिलते जुलते लगे। घरवालों की चिंता और बढ़ गयी। किसीने उपदेश दिया ज्योतिषी से परामर्श करलो। ज्योतिष विद्या में कई गयी भविष्य वाणी को आज भी इस समाज मे मान्यता दी जाती है। फिर ये भी किया गया।
उनके गणना के मुताबिक शिवानी की तीसरी संतान पुत्र संतान होगी। परिवार में इस बात को लेकर बहुत बहस हुई। शिवानी को लग रहा था जैसे कुछ तो बुरा होनेवाला है। पर मैं इस बार डट के सामना करूँगी। वन्ध वृद्धि की लालसा में वो लोग गयनेअकॉलोगिस्ट के पास पहुंचे और बच्चे का लिंग जांच करने की सिफारिश की। इस दुनिया में ऐसे भी डॉक्टर्स हैं जो चंद रुपयों के लिए ऐसे अवैध काम भी कर लेते हैं। इन सब के लिए कड़ी नियम लागू हैं, इसे कानूनन जुर्म मन जाता है। उसके बावजूद भी लीग पीछे नही हटते। लिंग जांच करने के बाद पता चला कि गर्भ में लड़की है। अब उन लोगों के पास एक विकल्प था 'आबोर्शन'। इस बात से शिवानी को सदमा लगा उसने कभी नहीं सोचा था कि उसे अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को गिराने पड़ेगा। उसने साफ इंकार कर दिया। लेकिन इस पुरुष प्रभुक्त समाज में वो लड़ती भी तो कब तक। परिवार वालों के दबाव में उसको गर्भनष्ट कराना पड़ा।
इस हादसे से वो पूरी तरह टूट चुकी थी। एक जीवन को मृत्यु के हाथ सौंप ने का पाप उसके रोम रोम को निर्जीव करता रहा।
फिर एक साल बाद वो फिरसे गर्भ धारण के लिए प्रस्तुत हुई। घर में खुशियां फैल गयी। ज्योतिषी जी की भविष्य वाणी पे निर्भर होकर सब खुश होगये।
महीने पे महीने बीतते गए और वो दिन भी आगया जब शिवानी को अस्पताल ले गए। वहां सब बस वो ख़ुश खबरी सुनने की छह में थे।
कुछ समय बाद ऑपेरशन थिएटर से बाहर निकली नर्स अपने हाथों में गुलाबी कपड़े से लिपटे एक फरिश्ते को ले आयी।
घरवालों के पास पहुंचकर उसने कहा-
झोलियाँ भर के खुशियां आयीं हैं
घर आंगन में चहक सजाने
ये नन्ही सी परी आपके जीवन में आई है।