वीरांगना
वीरांगना
शादी के चौथे महीने ही कारगिल युद्ध शुरू हो गया...
प्रीत को बहुत डर लग रहा था...आखिर कब युद्ध खत्म होगा......उनको कुछ हो तो नहीं जाएगा , अभी तो जीवन शुरू भी नहीं हुआ , मैंने तो ठीक से देखा भी नहीं...देखती भी कैसे शादी के दूसरे सप्ताह तो पति ड्यूटी चला गया था । अब छुट्टियों में आता पर वार छिड़ चुका था......सुबह का अखबार शाम की न्यूज़ सब दिल की धड़कने बढ़ा देती थी ।
आखिर जो नियति को मंजूर था वही हुआ एक शाम पति के शहीद होने की बुरी खबर लेकर आयी.......सुबह से ही घर पर नेता , मंत्री , संतरी , भीड़ जमा हो चुकी थी.....प्रीत बेसुध थी...मंजर ऐसा कि नारों , देशभक्ति गीतों , गौरव गाथाओं ने परिजनों को विलाप भी नहीं करने दिया.......सरकार ने खूब मदद की , आर्थिक सम्पन्नता की भी कोई कसर नहीं छोड़ी....
शहादत के कई दिनों बाद भी पत्रकार , नेता , लेखक घर आते रहे.......प्रीत को जगह जगह सम्मानित होने का न्योता मिलने लगा........प्रीत की कॉलेज सहेली ऋतु ने एक दिन झेंपते हुए कहा.......प्रीत अभी तो तेरी उम्र ही क्या है दुबारा शादी के बारे में क्या सोचा......
" ऋतु मैं वीरांगना हूँ और वीरांगनाओं के पुनर्विवाह नहीं हुआ करते नम आँखों से प्रीत ने कहा ......."
