सतविन्द्र कुमार राणा 'बाल'

Drama Classics

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सतविन्द्र कुमार राणा 'बाल'

Drama Classics

वारिस

वारिस

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सर्जरी के काफी समय बाद सीमा को ठीक से होश आया तो वह इधर-उधर देख रही थी। बेड के एक कोने पर उसकी जेठानी बैठी थी, जो उससे नज़र मिलते ही सुबकने लगी। शारीरिक पीड़ा से अधिक उसे अब मानसिक पीड़ा सालने लगी। उसकी जेठानी उसके सिर को सहलाते हुए सुबकते-सुबकते बुक्का फाड़ कर रोने लगी।

सीमा की भी आंखों से अनहोनी की शंका का डर झलकने लगा।

तभी उसकी जेठानी की जुबान फूटी, "ब्याह को बीस बरस हो गए, इब तो चांदना-सा दिखता महसूस होया था। लग्या बंजर धरती पर बीज फूट आया, पर..."

"क्या हो गया दीदी, सब ठीक है न?", उसने शंका जाहिर की।

"हाँ ठीक है...., ऐ क्यूकर बताऊँ कि क्या ठीक है? बीस बरस में बच्चे की आस होई थी।"

सीमा के मन में डर गहराने लगा। उसकी शादी को बीस वर्ष हो चुके थे। तरह-तरह के इलाज करवाने के बाद अब उसे मातृत्व का सुख मिलना था। लेकिन उसकी जेठानी का यह व्यवहार उसे विचलित कर रहा था।

उसने हिम्मत कर जोर देकर पूछा, " दीदी वे कहाँ हैं और आप सीधे-सीधे बता दो क्या हुआ?"

"ऐ परमात्मा ने कतई न सुनी। इब तो बालक-सा दे देता।"

"मतलब क्या है थारा?"

"इतने साल की तपस्या में कम से कम एक वारिस ठीक-ठाक हो ज्याता बस?"

"आप क्यों टसुए बहा रही हो?", वह बेचैन हो उठी।

"ऐ छोरा नहीं, छोरी हुई है। टसुए न बहाऊँ तो क्या थाली पीटूँ?", उसकी जेठानी ने सुबकते हुए कहा।

सीमा ने राहत की साँस ली और मुस्कुराते हुए बोली, "थाली ही पीट ल्यो।"


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