वाणी जयराम- यादों के झरोखे से
वाणी जयराम- यादों के झरोखे से
चार फ़रवरी २०२३ की शाम को टी वी समाचार से प्रसिद्ध गायिका वाणी जी के नश्वर शरीर को त्याग ईश्वर में लीन होने का समाचार सुन मैं हतप्रभ रह गई। पहली फ़रवरी की शाम को मेरी उनसे लगभग आधा घन्टा बातचीत हुई थी और वह पूर्णत: स्वस्थ थीं। फिर समाचार पत्रों से मालूम चला कि वह बिस्तर से नीचे गिरी हुई मृत पाई गई। प्रिय मित्र के खोने से गहरे दु:ख की अनुभूति हुई।
ह्रदय में बसी वाणी जी की यादों ने झरोखे से झाँक बाहर आने की जि़द ठान ली।
मस्तिष्क पहुँच गया आज से अट्ठाईस वर्ष पूर्व चेन्नई। मेरे पति का तबादला चेन्नई हो गया था। एक शाम को मेरे पति के मित्र ने यहाँ पार्टी में गये वहाँ मेरे बराबर की कुर्सी पर वाणी जयराम बैठी थीं। उनके साथ बातचीत में समय का पता ही न चला। यद्यपि हम दोनों की यह पहली भेंट थी फिर भी दोनों को ही को ऐसा महसूस हुआ मानों हम पुराने मित्र हों। मिलने का यह सिलसिला चलता रहा। एक बार छोटा सा संगीत का कार्यक्रम का आयोजन करना था जिसमें क़रीब बीस-पच्चीस महिलाओं को सम्मिलित होना था। वाणी जी के संगीत का आयोजन बड़े-बड़े सम्मेलनों में होता था अत: झिझकते हुये मैनें उनसे अपने छोटे से आयोजन में गाने का आग्रह किया। उन्होंने मुझसे कहा, “ आपके कहने पर मैं कहीं भी गा सकती हूँ ।”
अपने इस कथन का उन्होंने आजीवन अमल किया। वाणी जयराम जी ने हमारे छोटे से आयोजन में अपने गायन से चार चाँद लगा दिये और उनकी मधुर वाणी में संगीत का हमने भरपूर आनन्द उठाया।
वाणीजी ने फ़िल्म जगत में क़दम रखते ही अपने पहले गीत “बोले रे पपीहरा” से धूम मचा दी थी।आगे चल उन्हें तीन नेशनल एवार्ड, दो फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड से सम्मानित किया गया। फ़िल्म फ़ेयर ने उन्हें ‘लाइफ़ टाईम अ्चीवमेन्ट एवार्ड से भी सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त अनेकों पुरस्कार प्राप्त हुए। उन्होंने दस हज़ार से भी अधिक गानों की रिकार्डिंग की। २५ जनवरी २०२३ को सरकार ने वाणीजी के लिये पद्म भूषण पुरूस्कार की घोषणा की।
वाणी जी के पति जयराम जी जो एक उच्च अधिकारी थे, अपनी पत्नी के कैरियर को आगे बढ़ाने के लिये उनकी सहायता हेतू नौकरी छोड़ दी थी। बौलीवुड की राजनीति के कारण वाणी जी को लगभग काम मिलना बन्द हो गया तो जयराम दम्पत्ति चेन्नई जा कर बस गये। दक्षिण की फ़िल्मों के अतिरिक्त उनके अपने संगीत सम्मेलन आयोजित होते थे जिनका संपूर्ण कार्यभार व संचालन जयराम जी करते थे। वाणी जी अपने पति का बहुत आदर व सम्मान करती थीं और उन्हें अपनी प्रसिद्धी का हिस्सेदार मानती थीं।
वाणी दम्पत्ति को अहं छू कर भी नहीं गुज़रा था। मेरे पति जबलपुर मे कार्यरत थे जहाँ संगीत गोष्ठी का आयोजन करना था। मैनें वाणी जी से निवेदन किया और वह तुरन्त तैयार हो गई। श्रोताओं के उत्साह और आधिक्य को ध्यान में रखते हुए दो दिन का कार्यक्रम रखा गया था।
पहले दिन की गोष्ठी बहुत लोकप्रिय रही। दूसरे दिन जयराम दम्पत्ति को मेरे द्वारा स्थापित घर से भागे ग़रीब बच्चों के होम को दिखाने ले गये, जो उन्हें बहुत अच्छा लगा। शाम के कार्यक्रम की शुरूआत में वाणी जी ने उस दिन के संगीत को रिकार्ड करने का आदेश दिया और कैसैट बना कर बेचने के निर्देश दिये तथा बिक्री से मिली समस्त धनराशि को बच्चों के होम को दान करने की घोषणा की। यह घटना वाणी जी की सहृदयता को दर्शाता है । यह पूरे जबलपुर के लिये गर्व व चर्चा का विषय बना।
कुछ अर्से बाद मैं अपने पति के साथ मुंबई में बस गई। जयराम दम्पत्ति जब भी मुंबई आते तो हमारे घर अवश्य आते और वाणीजी अपने गायन से हमारा मन मोह लेतीं। एक बार व्यस्तता के कारण नहीं आ सकीं तो एयरपोर्ट जाते समय रास्ते से फ़ोन कर मुझे उन्होनें अपने द्वारा लयबद्ध की नई रचना गा कर सुनाई।
कुछ वर्ष पश्चात जयराम जी का देहावसान हो गया। उनकी अपनी कोई सन्तान न थी अत:
वह बिल्कुल अकेली रह गईं। मुंबई आना समाप्त हो गया। हमारी बस फ़ोन पर बात हो जाती।
वाणी जी के लिये पद्म भूषण पुरूस्कार की घोषणा के कारण पहली फ़रवरी को मैंने बधाई देने के लिये फ़ोन किया था। क्या पता था कि यह हमारी आख़िरी बातचीत होगी।
इतने अधिक राष्ट्रीय एवार्ड और प्रसिद्धी मिलने पर भी कैसे धरती पर टिके रह कर विनम्र बने रहें यह वाणी जी की जीवनी से सीखने का सबक़ है। आज वह मेरे बीच नहीं हैं परन्तु सदा मेरे हृदय में रहेंगीं।
