उम्मीद
उम्मीद


शर्दी का मौसम था, जबरदस्त कड़ाके की शर्दी और ओस पड़ रही थी, शहर में सभी लोग अच्छे से गरम कपड़े पहन कर रहते थे और अपने सेहत का पूरा ख्याल रखते थे, क्योंकि शर्दी बहुत ज़्यादा थी।
लोग घर मे ज़्यादातर वक़्त बिताते थे।
उसी शहर में एक भिखारी अपने पुराने जगह (जो शहर के प्रवेश द्वार से बिल्कुल सटा था) पर बैठा रोज़ की तरह आने जाने वाले लोगों से भीख मांग रहा था, कोई कुछ दे या न दे वो सबको दुआएं देता रहता था और ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करता रहता था।
कुछ लोग उसकी हालात को देख कर कभी खाने-पीने की चीज़े तो कभी कुछ पैसे दे देते थे, और कुछ बिना कुछ दिए ही चले जाते थे।
एक दिन की शाम को एक बड़ा सेठ अपने अपनों के साथ उधर से निकल रहा था, उस शाम को भी शर्दी जानलेवा थी बाकी दिनों की तरह, तो उस सेठ ने देखा कि ये भिखारी ठंड में वही पड़ा है जबकि बाकी भिखारी अपने किसी न किसी ठिकाने पर चले गए हैं। तो सेठ ने अपने लोगों से पूछा कि इस शहर में ये कौन सा भिखारी है जो इस ठंड में यही पड़ा है। तब सबने बताया कि इसका कहीं ठिकाना नहीं है, ये अच्छा इंसान है, पढा - लिखा है, लेकिन हाल
ात ने इसे ऐसा बना दिया है। आज इसके पास कुछ भी नहीं है कोई ठौर ठिकाना नहीं है, बस ये प्रवेश द्वार की ओट में इसी फ़टी से गुदड़ी में ये यहीं दिन रात पड़ा रहता है और लोगों को दुआए दे भीख मांगता है।
उस सेठ को बहुत दुःख हुआ उसकी दशा सुन कर, उसने (सेठ) उस भिखारी के पास जाकर बोला कि बाबा मैं आपके लिए एक कम्बल भेजवाता हूँ, इतना कह कर सेठ चला गया, घर पहुँच कर अपने काम मे व्यस्त हो गया, उसको याद ही नहीं रह गया कि उसने भिखारी को कम्बल देने का वायदा कर के आया है।
अगले दिन दोबारा जब सेठ उधर से निकला तो देखा कि शहर के द्वार पर बहुत भीड़ इकट्ठा हुयी है, जब पता किया तो वह वही भिखारी मरा पड़ा था।
सेठ वहां गया तो लाश के पास एक चिठी थी, जिसमे लिखा था कि सेठ जी सर्दी तो इतनी ही रोज़ थी लेकिन आज रात मुझे ज़्यादा ही ठंडी लग रही थी और मैं इसी प्रतीक्षा में था कि अभी आपका कम्बल मुझे मिल जाएगा, लेकिन रात की आखिरी पहर में जब मुझे निराशा लगाने लगी और शर्दी भी बहुत लग रही थी, बस आपके वादे की वजह से मैं ज़िन्दगी की जंग हार गया।
अगर वादा पूरा न कर सको तो वादा कभी मत करना।