वो नन्ही सी परी..
वो नन्ही सी परी..


बहुत खूबसूरत सा दिन था, जब वो नन्ही सी परी हमारी ज़िंदगी में आयी। ऐसा लग रहा था मानो ज़िन्दगी को पंख लग गए, जिधर भी देखो हर तरफ खुशी ही खुशी जैसा अहसास था। मेरे लिए वो पल भूल पाना उतना ही नामुमकिन है जितना इस दुनिया में बिना सांस लिए जीवित रहना।
मैं उस पल सिर्फ उस नन्ही सी परी को देखना चाहता था, लेकिन नहीं देख पाया। कुछ घंटो के बाद देख सका, तब ऐसा लगा जैसे किसी मरते हुऐ को जिंदगी मिल गयी हो। वो नन्ही परी अब धीरे धीरे बड़ी हो गयी और जब अपनी तोतली भाषा में कुछ कहती तो ऐसा लगता कि कितना सुनहरा पल है और मानो ईश्वर की वंदना हो। परी और बड़ी हुई, उसकी शिक्षा का समय आया। वो स्कूल में पहला दिन कैसे गुज़ारेगी, कैसे वो बिना माँ के अकेले रह पाएगी, आया उसका कैसे
देखभाल करेगी, परी रोयेगी तो उसको कौन चुप कराएगा...ऐसे बहुत से खयाल दिल मे द्वंद कर रहे थे।
धीरे धीरे परी स्कूल के सभी अध्यापक और विद्यार्थियों की चहेती हो गयी। उसका परीक्षा परिणाम भी बहुत अच्छा था, वो सबसे अव्वल आयी थी।
अब परी और बड़ी हुई, आगे की पढ़ाई शुरू हुई, परी को शहर से दूर जाकर पढ़ाई करनी है। परी कभी पीछे नहीं हटी, हमेशा जीतती रही। परी जब भी रोती या दुखी होती तो माँ - पापा से बात कर लेती या माँ से लिपट जाती सब दुख खत्म हो जाते थे।ये परी कोई और नही सब माँ और पापा की जान से बढ़कर उनकी प्यारी दुलारी बेटी है।
परी अपनी ज़िंदगी मे ऐसे ही हँसती, खेलती, इठलाती, खिलखिलाती, हमेशा खुश रहे।
*एक पिता...!